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भाषण : मद्रासकी सभामें


सारे दक्षिण आफ्रिकामें सभी भारतीयों के साथ निरे कुलियों जैसा व्यवहार करने की वृत्ति फैली हुई है। इस बातको कोई परवाह नहीं की जाती कि वे शिक्षित और स्वच्छतासे रहनेवाले हैं या नहीं। हमने अनेक बार देखा है कि हमारी रेल-गाड़ियोंमें गैर-गोरे यात्रियोंके साथ सभ्यताका व्यवहार बिलकुल नहीं किया जाता। यद्यपि यह अपेक्षा करना उचित न होगा कि एन॰ जी॰ आर॰ के गोरे कर्मचारी उनके साथ वैसा ही आदरका व्यवहार करें, जैसाकि वे यूरोपीय यात्रियोंके साथ करते हैं। फिर भी हम समझते है, गैर-गोरे यात्रियोंके साथ व्यवहार करने में अगर वे जरा अधिक शिष्टतासे काम लें तो इससे उनकी शानमें बट्टा न लगेगा। (२४-११-१८९३) दक्षिण आफ्रिकाका एक प्रमुख पत्र 'केप टाइम्स' कहता है :

नेटालने एक विचित्र नजारा उपस्थित कर रखा है। जिस वर्गके लोगोंके बिना उसका काम चलना ही कठिन है, उसीके प्रति वह चरम कोटिके तिरस्कारका पोषण करता है। उस देशसे भारतीय आबादीके निकल जानेपर व्यापारका बैठ जाना अनिवार्य है, और उस हालतकी कल्पना-मात्र की जा सकती है। फिर भी भारतीय वहाँ सबसे ज्यादा तिरस्कृत जीव हैं। रेलगाड़ीमें वे यूरोपीयोंके साथ एक ही डिब्बेमें यात्रा नहीं कर सकते, ट्रामगाड़ियोंमें बैठ नहीं सकते, होटलवाले उन्हें जगह और भोजन देनेसे इनकार करते हैं और सार्वजनिक स्नानगृहोंका उपयोग करने के अधिकारसे भी वे वंचित हैं। (५-७-१८९१)

श्री ड्रमंड एक एंग्लो-इंडियन हैं। नेटालवासी भारतीयोंके साथ उनका घनिष्ठ सम्बन्ध है। उन्होंने 'नेटाल मर्क्युरी' में लिखा है :

मालूम होता है कि यहाँके बहुसंख्य लोग भूले हुए हैं कि भारतीय ब्रिटिश प्रजा हैं, हमारी रानी ही उनकी महारानी है। सिर्फ एक इसी कारणसे आशा की जा सकती है कि यहाँ उनके लिए जिस तिरस्कारपूर्ण शब्द 'कुली' का प्रयोग होता है, वह न किया जाये। भारतमें केवल निचले दर्जेके गोरे ही वहाँके लोगोंको 'निगर' (हबशी) कहकर पुकारते हैं और उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं, मानों वे किसी आदर-मानके योग्य है ही नहीं। यहाँके अनेक लोगोंके समान ही उनकी नजरमें भारतीयोंको भारी बोश या यंत्र-मात्र माना जाता है।...आम तौरपर अज्ञानी लोग भारतीयोंको "पृथ्वीका मल" आदि कहा करते हैं, और यह सुनना बड़ा दुःखदायी है। गोरे लोगोंसे उनको सराहना नहीं मिलती, केवल निन्दा ही प्राप्त होती है।

मैं समझता हूँ कि मैंने अपने इस वक्तव्यको साबित करने के लिए काफी बाहरी प्रमाण दे दिये है कि रेलवे कर्मचारी भारतीयोंके साथ पशुवत् व्यवहार करते हैं। ट्रामगाड़ियोंमें भारतीयोंको अकसर अन्दर नहीं बैठने दिया जाता, बल्कि, वहाँकी