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सम्पूर्ण गांधी वाङ्

भाषामें 'अपस्टेयर्स' [अर्थात् छतपर] भेज दिया जाता है। उन्हें अकसर एक बैठकसे दूसरी बैठकपर हटा दिया जाता है और आगेकी बेंचोंपर बैठने ही नहीं दिया जाता। मैं एक भारतीय अफसरको जानता हूँ, जिन्हें जगह खाली होनेपर भी ट्रामके पाँवदानपर खड़ा रखा गया था। वे एक तमिल सज्जन हैं और नवीनतम ढंगकी यूरोपीय पोशाक पहने थे।

जहाँतक इस कथनका सम्बन्ध है कि भारतीयोंको अदालतोंमें न्याय मिलता है, मेरा निवेदन है कि मैंने यह कभी नहीं कहा कि नहीं मिलता; न मैं यही मानने को तैयार हूँ कि हमेशा और सब अदालतोंमें मिलता ही है।

भारतीय समाजकी समृद्धिशीलता साबित करने के लिए आँकड़े देना जरूरी नहीं है। इससे तो इनकार नहीं किया गया कि जो भारतीय नेटाल जाते हैं, वे अपनी जीविका उपार्जित करते ही हैं, और सो भी उत्पीड़नके बावजूद।

ट्रान्सवालमें हम जमीन-जायदाद नहीं रख सकते। निश्चित पृथक बस्तियोंको छोड़कर, दूसरे स्थानोंमें रहना या वहाँ व्यापार करना भी सम्भव नहीं होता। इन पृथक् बस्तियोंका बखान ब्रिटिश एजेंटने इन शब्दोंमें किया है : "ऐसे स्थान, जिनका उपयोग कूड़ा-करकट इकट्ठा करने के लिए होता है और जहाँ शहर और वस्तीके बीचके नालेमें झिर-झिरकर जानेवाले गन्दे पानीके सिवा दुसरा पानी है ही नहीं।" हम जोहानिसबर्ग और प्रिटोरिया में अधिकारपूर्वक पैदल-पटरियोंपर नहीं चल सकते। रातको ९ बजेके बाद घरसे नहीं निकल सकते। विना परवानोंके यात्रा नहीं कर सकते। रेलगाड़ियोंमें पहले या दूसरे दर्जेमें यात्रा करने से कानून हमें रोकता है। ट्रान्सवालमें बसने के लिए हमें तीन पौंडका एक विशेष पंजीकरण-शुल्क देना पड़ता है। और यद्यपि हमारे साथ सिर्फ "चलते-फिरते माल-असबाब"-जैसा व्यवहार किया जाता है, और हमें किसी प्रकारके कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं हैं, फिर भी अगर श्री चेम्बरलेनने हमारे भेजे हुए प्रार्थनापत्रकी उपेक्षा कर दी तो हमें अनिवार्य सैनिकसेवा करने का आदेश दिया जा सकेगा। इस पूरे मामले का इतिहास बड़ा मनोरंजक है, क्यों कि ट्रान्सवाल में रहनेवाले भारतीयोंपर इसका असर पड़ता है। मुझे अफसोस इतना ही है कि समयके अभावके कारण अभी मैं उसका वर्णन नहीं कर सकता। फिर भी मैं आपसे यह प्रार्थना तो करूँगा ही कि आप 'हरी पुस्तिका' में से उसका अध्ययन जरूर करें। हाँ, मुझे यह बताना भी भूलना नहीं चाहिए कि भारतीयोंके लिए देशी सोना खरीदना अपराध है।

ऑरेंज फ्री स्टेटने, अपने प्रधान मुखपत्रके शब्दोंमें, "भारतीयोंका, उन्हें केवल काफिरोंकी कोटिमें रखकर ही, वहाँ रहना असम्भव कर दिया है।" उसने एक विशेष कानून भी मंजूर किया है। उसके द्वारा हमें किन्हीं भी हालतोंमें वहाँ व्यापार करने, खेती करने या जमीन-जायदादके मालिक बनने से रोक दिया गया है। अगर हम इन अधःपतनकारी शर्तोंके सामने सिर झुका दें तो कुछ अपमानजनक उपचारोंसे गुजरनेके बाद हमें वहाँ रहने दिया जा सकता है। हमें राज्यसे खदेड़ दिया गया था और हमारे वस्तु-भंडार बन्द कर दिये गये थे। इससे हमें ९,००० पौंडकी हानि हुई। हमारा यह दुखड़ा अबतक बिलकुल अनसुना पड़ा है।