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भाषण : मद्रासकी सभामें

वह स्वायत्त शासन या उत्तरदायी शासनवाला उपनिवेश नहीं है। परन्तु जहाँतक उपर्युक्त दूसरे दो उपनिवेशोंका सवाल है, उनके संविधानमें यह शर्त मौजूद है कि सम्राज्ञीकी सरकार स्थानिक संसदोंके किसी भी अधिनियमका, गवर्नरकी स्वीकृति मिल जाने और कानून बन जानेके बाद भी, दो वर्षतक निषेध कर सकती है। उपनिवेशोंके अत्याचारी काननोंसे रक्षाका यह एक उपाय है। सरकारके नाम सम्राज्ञी-सरकारकी सुचनाओंमें और संविधान कानूनमें भी कुछ विधेयक गिना दिये गये हैं, जिन्हें सम्राज्ञीको अग्रिम अनुमतिके बिना गवर्नर स्वीकृति नहीं दे सकता। मताधिकार-विधेयक या प्रवासीविधेयक-जैसे विधेयक, जिनका लक्ष्य वर्गगत कानून बनाना है, ऐसे विधेयकोंमें शामिल हैं। इस तरह सम्राज्ञीके हस्तक्षेपका अधिकार सीधा और स्पष्ट है। यह बात सच है कि औपनिवेशिक विधानमडलोंके कानूनोंमें ब्रिटिश सरकार बहुत धीरे-धीरे हस्तक्षेप करती है। फिर भी ऐसे उदाहरण मौजूद है जबकि उसने मौजूदा प्रसंगसे कम जरूरी प्रसगोंपर दृढ़तासे काम लेनेमें पसोपेश नहीं किया। आप जानते ही है कि पहला मताधिकार-विधेयक ऐसे ही फायदेमंद हस्तक्षेपके फलस्वरूप रद हुआ था। इसके अलावा, उपनिवेशी लोग सदा ऐसे हस्तक्षेपके बारे में डरते रहते हैं। इंग्लैंडमें व्यक्त की गई सहानुभूतिके फलस्वरूप और कुछ माह पहले जो शिष्टमंडल श्री चेम्बरलेनसे मिला था, उसको श्री चेम्बरलेनने जो सहानुभूतियुक्त उत्तर दिया—इन दोनों बातोंके फलस्वरूप दक्षिण आफ्रिकाके अधिकतर पत्रोंने अपना रुख बहुत-कुछ बदल दिया है। जो हो, नेटालके अधिकतर पत्रोंने तो ऐसा किया ही है। जहाँतक ट्रान्सवालका सम्बन्ध है, समझौता मौजूद है ही। ऑरेंज फ्री स्टेटके बारेमें मैं इतना ही कह सकता हूँ कि एक मित्र-राज्यका सम्राजीकी प्रजाके किसी भी भागके लिए अपने देशके द्वार बन्द कर लेना अमित्रतापूर्ण व्यवहार है। और इस स्थितिमें, मेरा नम्र खयाल है कि उसे सफलतापूर्वक रोका जा सकता है।

यहाँ लंदन 'टाइम्स' के लेखोंसे कुछ ऐसे उद्धरण दे देना असंगत न होगा, जिनका सम्बन्ध हस्तक्षेपके प्रश्नके साथ और सामान्यतः पूरे प्रश्नके साथ है :

सारे प्रश्नका निचोड़ यह है : क्या सम्राज्ञीकी भारतीय प्रजाके साथ एक मित्र राज्य द्वारा स्थानच्युत और बहिष्कृत जाति (रेस) के समान व्यवहार किया जायेगा? या उसे वही अधिकार और मान-मर्यादा प्राप्त होगी, जो अन्य प्रजाओंको प्राप्त है? क्या उन प्रमुख मुसलमान व्यापारियोंके साथ, जो बम्बईमें विधानपरिषदमें बैठ सकते हैं, दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यमें मान-हानि और अत्याचारका व्यवहार किया जायेगा? हम अपनी भारतीय प्रजासे लगातार कहते आ रहे हैं कि उनके देशका आर्थिक भविष्य उनके बाहर फैलने और विदेशोंमें अपना व्यापार बढ़ाने की योग्यतापर निर्भर करता है। परन्तु अगर हमारी सरकार विदेशोंमें उन्हें वही संरक्षण दिलाने में असमर्थ हो, जो सम्राज्ञीके अधीन अन्य राज्योंमें से प्रत्येककी प्रजाको प्राप्त है, तो वह उन्हें क्या जवाब दे सकती है?