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भाषण : मद्रासकी संभालें

और यह व्यवस्था करना है कि ब्रिटिश प्रजाके साथ, चाहे वह किसी भी रंगकी क्यों न हो, न्याययुक्त व्यवहार किया जाये। और फिर :

भारतमें अंग्रेजों, हिन्दुओं और मुसलमानोंके सामने यह प्रश्न मुँह बाये खड़ा है कि जिन नयी औद्योगिक प्रवृत्तियोंकी इतने दिनों और इतनी उत्सुकतासे प्रतीक्षा की जाती रही है, उनका आरम्भ होनेपर भारतीय व्यापारियों और मजदूरोंको कानूनको नजरमें वही मान-मर्यादा मिलेगी या नहीं, जिसका उपभोग अन्य सब ब्रिटिश प्रजाएँ करती हैं? वे ब्रिटिश-शासनाधीन एक देशसे ब्रिटिशशासनाधीन दूसरे देशों स्वतन्त्रतापूर्वक आ-जा सकते हैं और सहयोगी राज्यों में ब्रिटिश प्रजाके अधिकारोंका दावा कर सकते हैं या नहीं? या, उनके साथ बहिष्कृत जातियों-जैसा व्यवहार किया जायेगा और उनके साधारण व्यापारिक आवागमनपर अनुमति-पत्रों तथा परवानोंकी व्यवस्था लादी जायेगी और उन्हें अपने व्यापारको स्थायी जगहोंमें किन्हीं पृथक् गन्दी बस्तियोंमें घेर दिया जायेगा, जैसाकि ट्रान्सवाल-सरकार करना चाहती है? ये सवाल उन सब भारतीयोंसे सम्बन्ध रखते हैं, जो भारतके बाहर जाकर अपनी आर्थिक हालत सुधारने के इच्छुक हैं। श्री चेम्बरलेनके शब्दों और हर वर्गके भारतीय पत्रोंके दृढ़ रुखसे स्पष्ट है कि ऐसे प्रश्नोंका उत्तर केवल एक ही हो सकता है। मैं उसी पत्रसे एक और उद्धरण देनेकी धृष्टता करूँगा :

श्री चेम्बरलेनके सामने जो प्रश्न निबटारेके लिए था उसकी निश्चित व्याख्या इतनी सरलतासे नहीं की जा सकती। एक ओर तो उन्होंने विदेशी राज्यों से शिकायतें दूर कराने की दृष्टिसे तमाम ब्रिटिश प्रजाओंके "समान अधिकारों" और समान विशेषाधिकारोंके सिद्धान्त स्पष्टतः निर्धारित कर दिये हैं। और सच बात तो यह है कि इस सिद्धान्तसे इनकार करना ही असम्भव होता, क्योंकि हमारी भारतीय प्रजा वफादारी और साहसके साथ आधी पुरानी दुनियामें ग्रेट ब्रिटेनकी लड़ाई लड़ती आ रही है और उसने अपनी वफादारी और साहससे तमाम ब्रिटिश जनताको प्रशंसा उपाजित कर ली है। ग्रेट ब्रिटेनके पास भारतीय जातियोंके रूपमें जो योद्धा-शक्ति सुरक्षित है, उससे उसके राजनीतिक प्रभाव और प्रतिष्ठामें बहुत वृद्धि हुई है। इन जातियोंके रक्त तथा शौर्यका युद्धमें तो उपयोग कर लेना परन्तु शान्तिकालके उद्यमोंमें उन्हें ब्रिटिश नामके संरक्षणसे वंचित रखना ब्रिटिश न्याय-बुद्धिकी अवहेलना करना होगा। भारतीय मजदूर और व्यापारी मध्य एशियासे लेकर आस्ट्रेलियाई उपनिवेशोंतक और स्ट्रेट्स सेट्लमेंट्ससे लेकर कैनारी द्वीपोंतक सारी पृथ्वीपर धीरे-धीरे फैल रहे हैं। वे जहाँ भी जाते हैं, समान रूपसे उपयोगी और अच्छा काम करनेवाले सिद्ध होते हैं। वे किसी भी सरकारके अधीन क्यों न रहें, कानूनका