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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

पालन करनेवाले, थोड़े-से में सन्तोष माननेवाले और परिश्रमशील बने रहते हैं। परन्तु वे मजदूरीके लिए जिस जगहका भी आश्रय लेते हैं वहीं, अपने इन्हीं सद्गुणोंके कारण, दूसरोंके भयानक प्रतिद्वन्द्वी बन बैठते हैं। यद्यपि इस समय प्रवासी भारतीय मजदूरों तथा छोटे-छोटे व्यापारियोंकी कुल संख्या लाखोंतक पहुँच गई है, वह इतनी तो हालमें ही दिखलाई पड़ी है कि उससे विदेशों या ब्रिटिश उपनिवेशोंमें उनके प्रति ईर्ष्या उत्पन्न हो, या उन्हें राजनीतिक अन्यायका शिकार बनाया जाये।

परन्तु हमने जिन तथ्योंको जूनमें प्रकाशित किया था, और जिन्हें गत सप्ताह भारतीयोंके एक शिष्टमंडलने श्री चेम्बरलेनके सामने पेश किया था, वे बताते हैं कि अब भारतीय मजदूरोंको ऐसी ईष्यासे बचाने की और उन्हें वही अधिकार प्राप्त कराने की, जिनका उपभोग दूसरी ब्रिटिश प्रजाएं करती हैं, जरूरत आ खड़ी हुई है।

सज्जनो, बम्बईकी जनताने अपना निर्णय निश्चित शब्दोंमें व्यक्त कर दिया है। हम अभी नौजवान और अनुभवहीन हैं। हमें आपसे—अपने बड़े और ज्यादा स्वतन्त्र भाइयोंसे—संरक्षणकी प्रार्थना करने का अधिकार है। अत्याचारोंके जुएमें जकड़े हुए हम केवल दर्दसे कराह सकते हैं। आपने हमारी कराह सुन ली है। अब अगर जुआ हमारे कंधोसे हटाया नहीं जाता तो दोष आपके मत्थे होगा।[१]

सभामें वितरित छपी हुई अंग्रेजी प्रति से।

१२. पत्र : 'हिन्दू' को

मद्रास
२७ अक्तूबर, १८९६

सम्पादक, 'हिन्दू',
मद्रास
महोदय,

कल शामको मद्रासकी जनता दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंके पक्षका समर्थन करने के लिए जिस सराहनीय रूपमें एकत्र हुई, उसके लिए मैं उसे धन्यवाद न दूँ तो मेरी कृतघ्नता होगी। वास्तवमें हर व्यक्ति सभाको खूब सफल बनाने में एक-दूसरेसे होड़ करता दीख रहा था। और स्पष्ट है कि वह वैसी सफल हुई भी। मैं आपको भी आन्दोलनका हार्दिक समर्थन करने के लिए धन्यवाद देता हूँ। आपके समर्थनसे शायद हमारे पक्षकी न्यायसंगतता और हमारी शिकायतोंकी वास्तविकताका बोध होता है।

  1. सामने बादमें एक प्रस्ताव पास किया जिसमें दक्षिण अफ्रीकावासी भारतीयोंके प्रति दुर्व्यवहारका विरोध और उसके कष्ट मिटाने की बात की गई थी।