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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

उपनिवेशके कानूनोंमें भी उतार दी गई है। वर्षातक वहाँ भारतीय शान्तिपूर्वक मताधिकारका उपभोग करते रहे थे। बेशक, कुछ जायदाद-सम्बन्धी योग्यताकी शर्तें जरूर थीं। और सन् १८९४ में ९,३०९ यूरोपीय मतदाताओंकी तुलनामें मतदातासूचीमें केवल २५१ भारतीयोंके नाम थे। परन्तु सरकारको एकाएक खयाल आया, या उसने ऐसा बहाना बनाया कि एशियाई मतदाता संख्या में यूरोपीय मतदाताओंको दबा देंगे-इसका भारी खतरा है। इसलिए जिनका नाम सही तौरपर मतदातासूचीमें दर्ज था उनको छोड़कर शेष सभी एशियाइयोंका मताधिकार छीन लेनेके बारेमें एक विधेयक वहांकी विधानसभामें पेश किया गया। इस विधेयकके विरोधमें भारतीयोंने विधानसभा और विधानपरिषद, दोनोंको प्रार्थनापत्र दिये। परन्तु कोई सुनवाई नहीं हुई और विधेयक मंजूर होकर कानून बन गया। इसके बाद भारतीयोंने लॉर्ड रिपनको, जो उस समय औपनिवेशिक कार्यालयमें थे, स्मृतिपत्र भेजा। परिणामस्वरूप वह कानून रद कर दिया गया और उसके स्थानपर एक दूसरा कानून बना दिया गया, जिसमें लिखा है : 'जिन देशोंमें संसदीय पद्धतिकी प्रातिनिधिक संस्थाएँ नहीं हैं उन देशोंके निवासियों अथवा उनकी पुरुष-शाखाओंके वंशजोंके नाम मतदाता-सूचीमें दर्ज नहीं किये जायेंगे, जबतक कि वे सपरिषद गवर्नरसे यह आज्ञा प्राप्त नहीं कर लेंगे कि इस कानूनके अमलसे उन्हें मुक्त रखा जाये।' इस कानूनके अमलसे वे लोग भी बरी माने गये हैं जिनका नाम मतदाता सूची में सही तौरपर दर्ज है। यह विधेयक पहले श्री चेम्बरलेनके सामने पेश किया गया था और उन्होंने उसे अमली मानीमें मंजूर कर लिया था। किन्तु फिर भी हमने इसका विरोध करनेका ही निश्चय किया है। इसलिए इसे नामंजूर करवाने के हेतुसे हमने श्री चेम्बरलेनको अपना प्रार्थनापत्र भेजा है। हमें आशा है कि जिस प्रकार अभीतक हमें मदद मिली है उसी प्रकार इस बार भी मिलेगी।

[प्र॰] नेटालके भारतीयोंमें अधिकांश तो मजदूर हैं। वे अगर अपने देशमें होते तो कभी सोच भी नहीं सकते थे कि वे ऐसी स्वतंत्र संस्थाओंमें जा सकेंगे। फिर क्या हम समझें कि वे नेटालमें राजनीतिक सत्ता पानेके इच्छुक हैं?

गां॰] जरा भी नहीं, सरकार और जनताको हमने जितने भी प्रतिवेदन दिये हैं, उन सबमें हमने इस बातकी बड़ी सावधानी रखी है और पहलेसे ही साफसाफ बता दिया है कि हमारे इस सारे आन्दोलनका हेतु केवल यही है कि चिढ़ानेवाली बन्दिशें हट जायें जिन्हें यूरोपीय आबादीको तुलनामें हमें केवल अपमानित करने के लिए हमपर लादा गया है। भारतीयोंको वहाँ बसने से निरुत्साहित करने के लिए नेटालकी विधानसभाने एक और विधेयक मंजूर किया है। इसका मंशा है कि जितने भी समयके लिए मजदूर नेटालमें रहेंगे, उस सारे समयके लिए वे उन्हीं शर्तोंसे बंधे रहेंगे। अगर वे इस तरह नये सिरेसे अपनेको बाँधने से इनकार करें तो उन्हें जबरदस्ती भारत भेज दिया जायेगा। और अगर भारत लौटनेसे भी वे इनकार करें तो उन्हें फी आदमी सालाना तीन पौंडका कर देना होगा। हमारे लिए दुर्भाग्यकी