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पत्र : 'इंग्लिशमैन' को

प्रतीक्षा की जाती रही है, उनका आरम्भ होनेपर भारतीय व्यापारियों और मजदूरोंको कानूनको नजरमें वही मान-मर्यादा मिलेगी या नहीं, जिसका उपभोग अन्य सब ब्रिटिश प्रजाएँ करती हैं? वे ब्रिटिश शासनाधीन एक देशसे ब्रिटिश शासनाधीन दूसरे देशमें स्वतंत्रतापूर्वक आ-जा सकते हैं और सहयोगी राज्योंमें ब्रिटिश प्रजाके अधिकारोंका दावा कर सकते हैं या नहीं? या उनके साथ बहिष्कृत जातियों-जैसा व्यवहार किया जायेगा और उनके साधारण व्यापारिक आवागमनपर अनुमति-पत्रों तथा परवानोंकी व्यवस्था लादी जायेगी, और उन्हें अपने व्यापारको स्थायी जगहोंमें किन्हीं पृथक् गन्दी बस्तियोंमें घेर दिया जायेगा, जैसाकि ट्रान्सवाल-सरकार करना चाहती है? ये सवाल उन सब भारतीयोंसे सम्बन्ध रखते हैं, जो भारतके बाहर जाकर अपनी आर्थिक हालत सुधारने के इच्छुक हैं। श्री चेम्बरलेनके शब्दों और हर वर्गके भारतीय पत्रोंके दृढ़ रुखसे स्पष्ट है कि ऐसे प्रश्नोंका उत्तर केवल एक ही हो सकता है।

इसलिए, स्पष्ट है कि यह सवाल सिर्फ उन भारतीयोंपर असर करनेवाला नहीं है, जो इस समय दक्षिण आफ्रिकामें रहते हैं, बल्कि उन सबपर असर करनेवाला है, जो भविष्यमें भारतके बाहर जाकर धनोपार्जन करना चाहते हों। यह भी स्पष्ट कि इसका सिर्फ एक ही जवाब हो सकता है। मुझे आशा है कि जवाब होगा भी सिर्फ एक ही।

उस देशमें भारतीयोंपर जो तमाम निर्योग्यताएँ लादी जा रही हैं उनका सारे भारतीय और आंग्ल-भारतीय संघ विरोध करें, और अगर उस दुव्यवहारका विरोध के लिए भारतके प्रत्येक शहरमें सभा की जाये तो भी, मेरा खयाल है, ज्यादा न होगा।

यहाँकी जनताको मालूम होना जरूरी है कि दक्षिण आफ्रिकाकी विभिन्न सरकारें कैसे जोरोंसे कार्रवाइयाँ कर रही हैं और औपनिवेशिक कार्यालयपर उनकी दृष्टि से प्रश्नोंको हल करने के लिए कितना दबाव डाला जा रहा है। सारे देशमें सार्वजनिक सभाएँ कर-करके सरकारसे मांग की जा रही है कि वह 'कुलियों के आगमनको रोके। विभिन्न शहरोंके मेयर अपनी कांग्रेसमें इकट्ठे होकर एशियाइयोंके आगमनपर प्रतिबन्ध लगाने की माँगें कर रहे हैं। केप कॉलोनीके प्रधानमंत्री सर गार्डन स्प्रिग इस विषयमें औपनिवेशिक कार्यालयके साथ लिखा-पढ़ी करने में लगे हैं और उन्हें आशा है कि नतीजा संतोषजनक होगा। नेटालके एक प्रमुख राजनीतिज्ञ श्री मेडन अपनी सभाओंमें कहते घूम रहे हैं कि उपनिवेशके इंग्लैण्डवासी मित्र श्री चेम्बरलेनके सामने उपनिवेशका दृष्टिकोण जोरदार तरीकेसे पेश करने की सारी कोशिशें कर रहे हैं। नेटालके प्रधानमंत्री सर जॉन राबिन्सन अपना स्वास्थ्य सुधारने और श्री चेम्बरलेनके साथ राज्यके महत्त्वपूर्ण मामलोंपर चर्चा करने के लिए इंग्लैंड गये हैं। दक्षिण आफ्रिकाके लगभग सब समाचार-पत्र उपनिवेशियोंके दृष्टिकोणसे इस विषयपर तर्क-वितर्क कर रहे हैं। हमारे विरुद्ध काम करनेवाली शक्तियोंमें से ये सिर्फ थोड़ी-सी है। जैसाकि ब्रिटिश संसदके एक भूतपूर्व सदस्यने अपने एक सहानुभूतिसूचक पत्रमें लिखा है, "सारा संघर्ष