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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

असम है", परन्तु "न्याय हमारे पक्षमें है।" अगर हमारा हेतु न्यायपूर्ण और नेक न होता तो बहुत दिन पहले ही उसका अन्त हो गया होता।

एक बात और। इस विषयपर अविलम्ब ध्यान देनेकी जरूरत है। अभी प्रश्न विचाराधीन है। वह बहुत दिनोंतक लटका नहीं रह सकता। और अगर, उसका फैसला भारतीयोंके प्रतिकूल हो गया तो उसपर फिरसे विचार कराना कठिन होगा। इसलिए भारतीय और आंग्ल-भारतीय जनताके लिए हमारी ओरसे काम करने का समय या तो यह है, या कभी नहीं। एक सम्मान्य उदारदलीय सज्जनने[१] कहा है : "अन्याय इतना गम्भीर है कि, मुझे आशा है, उसका निवारण करनेके लिए उसे जान लेना ही काफी है।"

हाँ, महोदय, मैं आंग्ल-भारतीय जनतासे भी प्रार्थना करता हूँ कि वह सक्रिय रूपसे हमारी सहायता करे। हमने किसी एक समाज या एक संघतक ही अपनी प्रार्थनाएँ सीमित नहीं रखीं। हमने सबके पास जानेका साहस किया है और अबतक हमें सभीसे सहानुभूति प्राप्त हुई है। लन्दन 'टाइम्स' और 'टाइम्स ऑफ इंडिया' बहुत दिनोंसे हमारे लक्ष्यकी हिमायत करते आ रहे हैं। मद्रासके सब पत्रोंने हमारा पूरा समर्थन किया है। आपने बिना गिलाके हमें मदद दी है और हमें अत्यन्त आभारी बना लिया है। कांग्रेसकी ब्रिटिश समितिने हमें अमूल्य सहायता दी है। श्री भावनगरी जबसे ब्रिटिश संसदमें पहुंचे, सदा हमारे विषयमें जागरूक रहे हैं। वे हमारी शिकायतोंको हर मौकेपर व्यक्त कर रहे हैं। लोकसभाके और भी कई सदस्योंने हमें सहायता दी है। इसलिए हम आंग्ल-भारतीय जनतासे जो अनुरोध कर रहे हैं, वह सिर्फ रस्म अदा करना नहीं है। मैं आपके सब सहयोगियोंसे निवेदन करता है कि वे इस पत्रको उद्धत करें। अगर मुझसे हो सकता तो मैं इसकी नकल सब पत्रोंको भेज देता।

मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
इंग्लिशमैन, १४–११–१८९६
  1. सर मंचरजी भावनगरी।