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पत्र : 'इंग्लिशमैन' को

है। वह अर्थ यह है कि ट्रान्सवाल-सरकार भारतीयोंको पृथक् बस्तियोंमें खदेड़ रही है। इससे स्थिति सम्भवतः और भी गम्भीर हो जाती है।

दक्षिण आफ्रिका-स्थित उच्चायुक्तने इस गणराज्यके भारतीय प्रश्नके सम्बन्धमें पंचके फैसलेको मंजूर करते हुए अपने २४ जून, १८९५ के तारमें लिखा है :

उपनिवेश-मंत्रीको भारतीयोंकी ओरसे एक तार मिला है। उसमें कहा गया है कि उन्हें बस्तियोंमें हट जानेको सूचना प्राप्त हुई है। यह प्रार्थना भी की गई है कि इस कार्रवाईको रुकवाया जाये। इसलिए मैं आपकी सरकारसे अनुरोध करता हूँ कि जबतक १८९३ का प्रस्ताव और परिपत्र रद न कर दिया जाये और कानूनको पंच-फैसलेके अनुरूप न ढाल दिया जाये—जिससे कि दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यको अदालतोंमें परीक्षणात्मक मुकदमा चल सके—तबतक कार्रवाई स्थगित रखी जाये।

उक्त प्रस्ताव और परिपत्रको तो रद कर दिया गया है, परन्तु जहाँतक मैं जानता हूँ, परीक्षणात्मक मुकदमा नहीं चलाया गया—और मुझे यहाँ दक्षिण आफ्रिकी अखबार तो बराबर मिलते ही रहते हैं। इसलिए स्पष्ट है कि ट्रान्सवाल-सरकारकी कार्रवाई असामयिक है। और मैं मानता हूँ कि अगर ज्यादा नहीं तो वह अन्तरष्ट्रिय शिष्टाचारका भंग करनेवाली तो है ही। मैं आपको याद दिलानेकी धृष्टता कर रहा हूँ कि ट्रान्सवालमें भारतीयोंकी १,००,००० पौंडसे ज्यादाकी पूंजी लगी हुई है। पृथक् बस्तियोंमें हटाये जानेसे भारतीय व्यापारी अमली मानीमें बरबाद हो जायेंगे। इस तरह इस प्रश्नके तात्कालिक पहलू के साथ सम्राज्ञीके सैकड़ों प्रजाजनोंका अस्तित्व ही जड़ा हुआ है। उन प्रजाजनोंका एकमात्र अपराध यह है कि वे शराबसे परहेज करने वाले, मितव्ययी और उद्योगी हैं।

मेरा निवेदन है कि यह मामला भारतकी समस्त जनतासे जरूरी और अविलम्ब कार्रवाईकी माँग करता है।

मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
इंग्लिशमैन, ८-१२-१८९६