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२२. भेंट : 'नेटाल एडवर्टाइजर को

[कूरलैंड जहाज]
[१३][१] जनवरी, १८९७

[प्रतिनिधि :] प्रदर्शन-समितिके[२] कार्य के बारे में आपके क्या विचार हैं?

[गांधीजी:] मेरा निश्चित खयाल है कि प्रदर्शन बहुत ही कुमंत्रित ढंगसे किया गया, खास तौरसे तब, जबकि उसे करनेवाले कई ऐसे उपनिवेशी हैं, जो अपने-आपको ब्रिटिश ताजके प्रति वफादार बताते हैं। और मेरी यह कल्पना भी कभी नहीं थी कि मामला इस हदतक पहुँच जायेगा। अपने प्रदर्शनसे वे गैर-वफादारीकी अत्यन्त निश्चित भावना प्रकट कर रहे हैं और इसका असर न सिर्फ सारे उपनिवेशमें, बल्कि सारे ब्रिटिश साम्राज्यमें—भारतमें तो और भी खास तौरसे—महसूस किया जायेगा।

किस प्रकार?

यहाँ आये हुए भारतीयोंको जिस बातसे दुःख होगा वह निश्चय ही भारतके सारे निवासियोंके लिए दुःखदायी होगी।

आपका मतलब यही है न कि भारतमें इस देशके प्रति दुर्भाव फैल जायेगा?

हाँ, और उससे भारतीयोंमें ऐसा दुर्भाव पैदा होगा जो आसानीसे दूर नहीं किया जा सकेगा। इसके अलावा भारतके विरुद्ध दसरे ब्रिटिश उपनिवेशोंमें भी पारस्परिक दुर्भाव पैदा हो जायेगा। मेरा मतलब यह नहीं है कि आज भारतीयों और उपनिवेशियोंके बीच आम तौरपर कोई बहुत भारी दुर्भाव है। परन्तु मुझे यह निश्चित रूपसे लगता है कि उपनिवेशी यहाँ जो-कुछ कर रहे हैं, उससे भारत में यही अनुमान किया जायेगा कि हरएक दूसरे ब्रिटिश उपनिवेशमें भी ऐसा ही होगा। और अभी जिस हदतक स्थिति पहुँच गई है, उससे इस अनुमानकी पुष्टि ही होती

  1. तार द्वारा दक्षिण अफ्रीका वापस बुलाये जाने पर गांधीजी कूरलैंड जहाजसे १८ दिसम्बर १८९६ को डर्बन पहुंचे 'नादरी' नामक एक अन्य जहाजभी ४०० भारतीय मुसाफिरों को लेकर वहां पहुँचा परन्तु इन दोनों जहाजों को, इस आधार पर की बम्बई में जहां से जहाज चले थे प्लेग कि बिमारी फैली हुई है अवधि बढ़ा-बढ़ा कर तीन सप्ताह से अधिक तक संक्रमक रोग सम्बन्धी समारोधन में रखा गया। यह भेंट वार्ता
  2. यूरोपीयो की बनाई हुई एक कमेटी, जिसका उद्देश्य भारतीय यात्रियोंके उतरने के विरुद्ध बंदरगाह पर प्रदर्शन संगठीत करना था।

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