पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/१५

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पाठकोंको सूचना

इस खण्डमें कई परिपत्र और प्रार्थनापत्र दिये जा रहे हैं। यद्यपि इनपर अन्य लोगोंके हस्ताक्षर है, फिर भी इन्हें निःसन्देह गांधीजी ने ही तैयार किया था। जैसा कि बादमें प्रसंगवश खण्ड ३, पृ॰ २९० पर एक शीर्षकमें यह बात स्पष्ट कर दी गई है।

अंग्रेजी और गुजरातीसे अनुवाद करते समय उसे यथासम्भव मूलके निकट रखने का प्रयत्न किया गया है, किन्तु साथ ही भाषाको सुपाठ्य बनाने का भी पूरा ध्यान रखा गया है। जो अनुवाद हम प्राप्त हो सके हैं, हमने मूलसे मिलान करके उनका उपयोग किया है। नामोंको सामान्य उच्चारणके अनुसार ही लिखने की नीतिका पालन किया गया है।

मूल सामग्रीके बीच चौकोर कोष्ठकमें दिये गये अंश सम्पादकीय हैं। गांधीजी ने किसी लेख, भाषण आदिका जो अंश मूल रूपमें उद्धृत किया है वह हाशिया छोड़कर गहरी स्याहीमें छापा गया है। भाषणोंकी परोक्ष रिपोर्ट तथा वे शब्द जो गांधीजी के कहे हुए नहीं हैं, बिना हाशिया छोड़े गहरी स्याहीमें छापे गये हैं। भाषणों और भेंटकी रिपोर्टोके उन अंशोंमें जो गांधीजी के नहीं है, कुछ परिवर्तन किया गया है और कहीं-कहीं कुछ छोड़ भी दिया गया है।

शीर्षककी लेखन-तिथि दायें कोनेमें ऊपर दी गई है; जहाँ वह उपलब्ध नहीं है वहाँ अनुमानसे निश्चित तिथि चौकोर कोष्ठकोंमें दी गई है और आवश्यक होनेपर उसका कारण स्पष्ट कर दिया गया है। जिन पत्रोंमें केवल मास या वर्षका उल्लेख है, उन्हें मास या वर्षके अन्तमें रखा गया है। शीर्षकके अन्त में साधन-सूत्रके साथ दी गई तिथि प्रकाशन की है। गांधीजी के लेख, जहाँ उनकी लेखन-तिथि उपलब्ध है अथवा जहाँ किसी दृढ़ आधारपर उसका अनुमान किया जा सका है, वहाँ लेखन तिथिके अनुसार, और जहाँ ऐसा सम्भव नहीं हुआ, वहाँ उनकी प्रकाशन-तिथिके अनुसार दिये गये हैं।

खण्डमें जहाँ 'आत्मकथा' का उल्लेख हुआ है वह इस ग्रंथमालाके खण्ड ३९ में समाहित 'आत्मकथा' का तथा जहाँ खण्ड १ का हवाला दिया गया है, वह जून १९७० का संस्करण है।

ग्यारह