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भेंट : 'नेटाल एडवर्टाइज़र' को

है और, इसलिए, वे इस प्रकारकी कार्रवाइयाँ कर रहे हैं। अगर मेरा यह खयाल साधार है तो मैं कहता हूँ कि यहाँके नेता भारतीयों और उपनिवेशवासियोंके प्रति भी अन्याय कर रहे हैं। मैं तो निश्चयपूर्वक कहता हूँ कि जो बातें मैंने यहाँ प्रत्यक्ष रूपसे कही हैं, उनसे अधिक भारतमें कुछ भी नहीं कहा है। और मैंने जो इस मामलेको वहाँ पेश किया उससे कोई बिगाड़ नहीं हुआ है।

अपनी इस भारतीय मुहिममें शर्तबन्द भारतीय मजदूरोंके प्रश्नके बारे में आपका रुख क्या रहा?

अपनी पुस्तिकाओंमें और अन्यत्र भी मैंने साफ-साफ कह दिया है कि संसारके दूसरे हिस्सोंमें गिरमिटिया भारतीयोंके साथ जैसा व्यवहार हो रहा है, नेटालमें न तो उससे अच्छा व्यवहार हो रहा है और न बुरा। मैंने कहीं यह बताने का प्रयत्न नहीं किया है कि उनके साथ क्रूरता बरती जा रही है। सामान्य रूपसे कहें तो सवाल भारतीयोंके प्रति दुर्व्यवहारका नहीं, बल्कि उनपर लगाई गई कानूनी बन्दिशोंका है। पुस्तिकामें मैंने कहा है कि मैंने जो उदाहरण पेश किये है वे प्रकट करते हैं कि इस दुर्व्यवहारकी जड़में उपनिवेशवासियोंके दिलमें भरा हुआ पूर्वग्रह है। और मैंने यह बताने का प्रयास किया है कि भारतीयोंकी आजादी पर बन्दिशें लगानेवाले कानूनोका सम्बन्ध इस पूर्वग्रहसे है।

मैंने आपको बताया कि यहाँके भारतीयोंने भारत सरकार, भारतकी जनता और इंग्लैंडकी सरकारसे यह अर्ज नहीं किया है कि उपनिवेशवासियोंके दिलोंमें उनके प्रति जो दुर्भाव भरा हुआ है उससे उन्हें मुक्ति दिलाई जाये। हाँ, मैंने यह तो अवश्य कहा है कि दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंको अधिकसे-अधिक नफरतकी निगाहसे देखा जाता है और उनके साथ बुरा व्यवहार भी होता है। परन्तु इस सबके बावजूद, हमारी माँग इनसे मुक्ति पानेकी नहीं, बल्कि उनपर जो कानूनी बन्दिशें लगी हुई हैं उन्हें हटाने के लिए है। हमारा विरोध तो दुर्भावके आधारपर बने कानूनोंके प्रति है और हम राहत इन कानूनोंसे पाना चाहते हैं। सो, यह तो भारतीयोंके लिए केवल सहिष्णुता रखनेका प्रश्न है। उपनिवेशवासियों और विशेषकर प्रदर्शन-समितिने जो रुख अपना रखा है वह तो असहिष्णुताका है। अखबारोंमें यह लिखा गया है कि भारतीय इस प्रयत्नमें है कि उपनिवेशको भारतीयोंसे भर दिया जाये,[१] और इसका अगुआ मैं हूँ। यह कथन एकदम झूठ है। इन मुसाफिरोंको जानेकी प्रेरणा देने में मेरा उतना ही हाथ है, जितना यूरोपसे मुसाफिरोंको आनेकी प्रेरणा देनेमें। मतलब यह कि ऐसा कोई प्रयत्न कभी किया ही नहीं गया।

मैं तो समझता हूँ कि आपके इस आन्दोलनका और उलटा असर पड़ा होगा।

सचमुच, यही हुआ। मैंने कुछ सज्जनोंसे यहाँ आनेके बारेमें बातचीत की। हेतु यह था कि मेरे चले जाने के बाद वे मेरे कामको सँभाल सकें। परन्तु मुझे जरा भी सफलता नहीं मिली।[२] उन्होंने यहाँ आनेसे इनकार कर दिया।

  1. देखिए "प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको" १५–३–१८९७।
  2. देखिए पृ॰ ६३–६४, ६९–७१ और ९८। अब