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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय


'कूरलैंड' और 'नादरी' पर आये हुए मुसाफिरोंकी संख्या भी बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई है। जहाँतक मुझे पता है, इन दो जहाजोंपर ८०० मुसाफिर नहीं है। उनकी कुल संख्या करीब ६०० है। इनमें से नेटाल आनेवालों की संख्या केवल २०० है। और शेष मुसाफिर डेलागोआ-बे, मारीशस, बोरबन और ट्रान्सवाल जायेंगे। और नेटाल आनेवाले इन २०० में से भी केवल १०० नये हैं, जिनमें ४० महिलाएँ हैं। अतः अब केवल ६० नये आगन्तुकोंको प्रवेश देनेका सवाल है। ये साठ नये आगन्तुक दूकानदारोंके सहायक, अपने-आप आनेवाले व्यापारी और फेरीवाले है। दूसरे बन्दरगाहोंको आनेवाले जो मुसाफिर आये है उनको लाने में भी मेरा कोई हाथ नहीं है। एक यह समाचार भी छपा है कि जहाजपर कोई छापनेका यन्त्र, ५० लुहार, और ३० कम्पोजीटर भी हैं। यह सब बिलकुल झूठ है। यह सब डर्बनके यूरोपीय कारीगरों और कर्मचारियोंको भड़काने के लिए कहा गया है, हालाँकि ये सारी बातें एकदम निराधार हैं। हाँ, प्रदर्शन-समितिके नेता अथवा नेटालमें किसीका भी आन्दोलन करना उस हालतमें उचित होता जबकि नेटालको भारतीयोंसे, और इस प्रकारके भारतीयोंसे, भर देनेका सचमुच कोई सुसंगठित प्रयत्न होता। तब भी, याद रहे, केवल वैध आन्दोलन किया जा सकता था। परन्तु सच तो यह है कि जहाजपर एक भी कम्पोजीटर या लुहार नहीं है।

यह भी कहा गया है कि जहाजोंपर आये हुए मुसाफिरोंको मैं सलाह दे रहा हैं कि उन्हें कानुनके खिलाफ जो रोक रखा गया है, उसपर वे नेटालकी सरकारके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करें।[१] यह एक दूसरी निराधार बात है। मेरा उद्देश्य दो. कीमोंके बीच झगड़े के बीज बोना नहीं, बल्कि उनके बीच सद्भाव पैदा करने में मदद करना है। किन्तु इस शर्तपर कि सन् १८५८ की घोषणा उन्हें जो प्रतिष्ठा प्रदान करती है उसमें किसी प्रकार भी कमी स्वीकार करने के लिए उनसे न कहा जाये। घोषणामें साफ कहा गया है कि सम्राज्ञीके समस्त भारतीय प्रजाजनोंके साथ समानताका व्यवहार होगा, चाहे वे किसी जाति, वर्ण या धर्मके हों। और मेरा निवेदन प्रत्येक उपनिवेशवासीसे यह विनती करने का मुझे हक है कि वह घोषणासे चाहे जितना भी असहमत क्यों न हो, उसे सहिष्णताकी वत्ति धारण करनी चाहिए। सच पूछिए तो भारतीयोंके प्रति किसीको कोई आपत्ति हो ही नहीं सकती। कलोनियल पैट्रिआटिक यूनियन[२] [औपनिवेशक देशभक्त संघ ने वक्तव्य निकाले है कि कारीगरवर्गमें बेचैनी पैदा हो गई है। किन्तु मैं तो कहता हूँ कि भारतीयों और यूरोपीयोंके बीच होड़ है ही नहीं।

यह सच है कि कभी-कभी कुछ भारतीय नेटाल आ जाते हैं। परन्तु नेटालमें उनकी जो संख्या है उसे बहुत बढ़ाकर बताया जा रहा है। और नये आनेवाले तो

  1. देखिए "प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको", १५–३–१८९७।
  2. डर्बन के यूरोपीयोंने नवम्बर १८९६ में स्वतंत्र भारतीयों के आगमन को रोकने के लिए इस संघ का गठन किया था। देखिए पृ॰ १५४