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२३. पत्र : महान्यायवादीको

बीच ग्रोव, डर्बन
२० जनवरी, १८९७

सेवामें
माननीय हैरी एस्कम्ब
महान्यायवादी
पीटरमैरित्सबर्ग
महोदय,

आपने मेरे बारेमें जो कृपापूर्ण पूछताछ की और पिछले बुधवारकी घटनाके बाद सरकारी कर्मचारियोंने मेरे प्रति जो सहृदयता दिखाई, उसके लिए मैं आपको और सरकारको धन्यवाद देता हूँ[१]

मेरा निवेदन है कि मैं नहीं चाहता, पिछले बुधवारको कुछ लोगोंने मेरे साथ जो बरताव किया था, उसका कोई खयाल किया जाये। उस बरतावका कारण मैंने एशियाइयोंके प्रश्नके सम्बन्धमें भारतमें जो-कुछ किया उसकी गलतफहमी था, इसमें मुझे कोई सन्देह नहीं है।[२]

मेरा फर्ज है, मैं सरकारको बता दूं कि समुद्री पुलिसने तो आपके आदेशोंके अनुसार मुझे गुपचुप रातको निकाल ले जानेका प्रस्ताव किया था, फिर भी मैं श्री लॉटनके[३] साथ तटपर चला गया। यह मैंने अपनी जिम्मेदारीपर किया और समुद्री पुलिसको इसकी सूचना नहीं दी।

आपका, आदि,
मो०॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]

मुख्य उपनिवेश-मन्त्रीके नाम नेटालके गवर्नरके खरीता नं॰ ३२, ता॰ ३ मार्च, १८९७ का सहपत्र।

कलोनियल ऑफिस रेकार्ड्स : पिटिशन ऐंड डिस्पैचेज, १८९७।

  1. १३ जनवरी को जहाज से उतरने पर डर्बन में प्रदर्शनकारी भीड़ के एक हिस्सेने गांधीजी पर हमला किया था। मगर पहले तो डर्बनके पुलिस-सुपरिटेंडेंटकी पत्नी श्रीमती अलेक्ज़ैंडरके वीरतापूर्ण हस्तक्षेप के कारण और बादमें जब वह मकान घेर लिया गया जिसमें गांधी जी रूके थे, स्वयं उस अफसर की चतुराईसे उनके प्राणों की रक्षा हो सकी। देखिए खण्ड २९, पृ॰ ४२–५० तथा खण्ड ३९ पृ॰ १४६–५२।
  2. उपनिवेश मंत्री चेम्बरलेनने नेटाल सरकार को तार दिया था। उसपर मुकदमा चलाने के लिए गांधीजी से मदद मांगी थी।
  3. डर्बनके एक योरोपीय एडवोकेट जो गांधी जी के मित्र थे।