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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

कमेटी नियुक्त की थी कि दोनों जहाजोंके बारेमें क्या कार्रवाई की जाये। उस कमेटी ने यह रिपोर्ट दी कि धुआँ आदि देने के बाद १२ दिनका संगरोध जरूरी होगा। इस समय स्वास्थ्य अधिकारीने धुआँ आदि देने और शोधन करने की सूचनाएँ दीं, जिन्हें पूरा कर दिया गया। इसके ६ दिन बाद दोनों जहाजोंपर एक-एक अफसरको धुआँ देने आदिका काम जाँचने के लिए भेजा गया। बादमें स्वास्थ्य-अधिकारी फिरसे आया और उसने उस दिनसे १२ दिनका संगरोध जारी किया। इस प्रकार यदि कमेटीकी रिपोर्ट उचित हो तो भी १२ दिनका संगरोध शुरू होनेके पहले साफ ११ दिन बरबाद हुए।

जब कि जहाज इस तरह बाहरी लंगरस्थलमें पड़े हुए थे, श्री हैरी स्पार्क्स नामक एक स्थानिक कसाईने, जो कि स्वयंसेवक, सेनाकी 'नेटाल माऊंटेड राइफल्स' टुकड़ीका कप्तान है, अपने हस्ताक्षरोंसे एक सूचना प्रकाशित की। उसमें "४ जनवरी को आयोजित एक आम सभामें शामिल होनेके लिए डर्बनके हरएक आदमीका" आह्वान किया गया था और बताया गया था कि "सभाका उद्देश्य एक प्रदर्शन का आयोजन करना है, ताकि प्रदर्शनकारी बन्दरगाहपर जायें और एशियाइयोंके उतरनेका विरोध करें।[१] इस सभामें बहुत बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे और यह डर्बनके नगर-भवनमें हुई थी। तथापि, इसकी यह शिकायत थी कि समाजके अपेक्षाकृत ज्यादा समझदार लोग आन्दोलनमें सक्रिय भाग लेनेसे दूर रहे। यह भी याद रखने लायक है कि पहले जिन संघोंका जिक्र किया जा चुका है उन्होंने भी इस आन्दोलनमें भाग नहीं लिया। ऊपर बताई हई कमेटीके एक सदस्य तथा जहाजी कार्बिनियरोंके[२] कप्तान डॉ॰ मैकेंजी और एक स्थानिक सॉलिसिटर तथा डर्बन लाइट इनफॅटीके कप्तान श्री जे॰ एस॰ वाइली उसके मुख्य अगआ थे। सभामें उत्तेजक भाषण दिये गये। निश्चय किया गया कि सरकारसे माँग की जाये कि दोनों जहाजोंके यात्रियोंको उपनिवेशके खर्चपर भारत वापस भेज दिया जाये। और यह "कि इस सभामें हाजिर हर आदमी मंजूर करता है और प्रतिज्ञा करता है कि वह उपर्युक्त प्रस्तावको कार्यान्वित करने में सरकारको सहायता देनेकी दृष्टिसे देशकी जो-कुछ भी माँग होगी उसे पूर्ण करेगा; और इस दृष्टिसे, अगर जरूरत हुई तो, उससे जब कहा जायेगा वह बन्दरगाहपर हाजिर होगा।" सभाने यह सुझाव भी दिया कि संगरोध की अवधि और बढ़ा दी जाये और अगर ऐसा करने के लिए जरूरी हो तो संसदका एक विशेष अधिवेशन किया जाये। मेरे नम्र मतसे सभाने इस प्रकार साफ जाहिर कर दिया कि पहले जो संगरोध जारी किया गया था उसका मंशा सिर्फ यह था कि भारतीयोंको इतना परेशान कर दिया जाये कि वे भारत वापस चले जायें।

सरकारने तार द्वारा प्रस्तावोंका उत्तर दिया। उसमें कहा गया था कि "हमें सम्राज्ञीकी प्रजाके किसी वर्गको उपनिवेशमें उतरने से रोकने का संगरोध-कानूनोंसे प्राप्त

  1. देखिए पृ॰ १६०।
  2. कार्बीन नामकी छोटी हल्की राइफ्लसे लैस सैनिक।