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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

लोग तेलमें सने चिथड़े की बू पर ही जिन्दा रह सकते हैं।" एक श्रोताने आवाज लगाई : "कुली लोग यहाँ आकर खरगोशोंकी तरह बढ़ने लगते हैं। एक और ने शिकायत की : "सबसे मुश्किल बात तो यह है कि हम उन्हें गोली मारकर खत्म भी नहीं कर सकते।" डर्बनकी एक सभामें एक श्रोताने उक्त प्रार्थनापत्रके विषयमें कहा कि "यदि भारतीय कारीगर आये तो हम बन्दरगाहपर जायेंगे और उन्हें उतरने नहीं देंगे।" इसी सभामें एक और आदमीने कहा : "कुली भी कहीं आदमी होते हैं!" इन बातोंसे प्रकट है कि गत जनवरीकी घटनाओंकी भूमिका अगस्त १८९६ में ही बाँधी जाने लगी थी। इस आन्दोलनकी एक और विशेषता यह थी कि मजदूर लोगोंको इसमें भाग लेने के लिए उकसाया जा रहा था।

प्रवासी-न्यास-निकायकी कार्रवाईपर ठीक प्रकारसे विचार करने का समय आया ही था कि १४ सितम्बर १८९६ को समाचार-पत्रोंमें रायटर समाचार-एजेंसीका यह तार प्रकाशित हुआ :

भारतमें प्रकाशित हुई एक पुस्तिकामें कहा गया है कि नेटालमें भारतीयोंको लूटा और पीटा जाता है। उनके साथ पशुओंका-सा बरताव किया जाता है। और वे अपनी तकलीफोंको रफा कराने में असमर्थ हैं। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने इन शिकायतोंको जाँचको हिमायत की है।

इस तारसे स्वभावतः उपनिवेशकी जनता भड़क गई और इसने आगमें घी की आहुतिका काम किया। यह पुस्तिका वस्तुतः श्री मो॰ क॰ गांधी द्वारा लिखित, दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीयोंकी कष्ट-गाथा थी। और दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजके प्रतिनिधियोंने "भारतके अधिकारियों, लोकपरायण व्यक्तियों और लोकसंस्थाओंको उन मुसीबतोंका परिचय देनेके लिए, जो दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंको भोगनी पड़ रही है,"[१] उनको नियुक्त किया था।

यहाँ प्राथियोंको आवश्यक जान पड़ता है कि प्रकरणसे तनिक हटकर स्थितिको स्पष्ट कर दिया जाये। प्राथियोंको यह कहने में संकोच नहीं कि उक्त तारमें जो-कुछ लिखा था उसका उक्त पुस्तिकासे समर्थन नहीं होता था। जिस-जिसने दोनों विवरण पढ़े थे उस-उसने इस सचाईको माना था। 'नेटाल मर्क्युरी'ने तार देखकर जो रुख अपनाया था उसे, पुस्तिका पढ़ने के पश्चात्, बदलकर ये शब्द लिखे थे :

श्री गांधीने स्वयं, और अपने देशवासियोंकी ओरसे, ऐसा कुछ नहीं किया जिसे करने का उन्हें अधिकार नहीं है। और जिस सिद्धान्तका वे प्रतिपादन कर रहे हैं वह उनकी दृष्टिसे उचित और आदरणीय है। वैसा करने का उनका अधिकार है, और जबतक वे सीधे और ईमानदारीके रास्तेपर रहेंगे तबतक न न तो उन्हें दोष दिया जा सकेगा और न उनके काममें रुकावट डाली जा सकेगी। जहाँतक हम जानते हैं, वे सदा इसी रास्तेपर चलते आये हैं; और

  1. देखिए "प्रमाणपत्र" पृ॰ १।