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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको १५३

हम ईमानदारीसे यह नहीं कह सकते कि उनकी पुस्तिकामें उनकी दृष्टिसे, स्थिति का चित्रण अनुचित किया गया है। रायटरके तारमें श्री गांधीका कथन बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है। उन्होंने सिर्फ कुछ शिकायतें गिनाई हैं, परन्तु उनके कारण किसीके लिए भी यह कहना उचित नहीं कि पुस्तिकामें कहा गया है कि नेटालमें भारतीयोंको लूटा और पीटा जाता है। उनके साथ पशुओंका-सा बरताव किया जाता है; और वे अपनी तकलीफें रफा कराने में असमर्थ हैं। (१८ सितम्बर, १८९६)

उसी तारीखके 'नेटाल एडवर्टाइज़र' ने लिखा था :

श्री गांधीको जो पुस्तिका हालमें बम्बईमें प्रकाशित हुई है, उसे पढ़कर यह परिणाम निकलता है कि रायटरके तारमें उसकी बातों और उद्देश्यको बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दिया गया था। यह ठीक है कि श्री गांधीने गिरमिटिया भारतीयोंके साथ कुछ दुर्व्यवहार होनेकी शिकायत की है, परन्तु उनकी पुस्तिकामें ऐसा कुछ नहीं है जिसके कारण यह कहा जा सके कि नेटालमें भारतीयोंको लूटा और पीटा जाता है। और उनके साथ पशुओंका-सा बरताव किया जाता है। उनकी तो वही पुरानी चिर-परिचित शिकायत है कि यूरोपीय लोग भारतीयोंके साथ ऐसा बरताव करते हैं जैसेकि वे किसी दूसरे वर्ग और जातिके हों, उन्हें वे लोग अपनेसे भिन्न जातिके समझते हैं। श्री गांधीकी दृष्टिसे यह बात बहुत शोचनीय है। और उनके तथा उनके देशवासियोंके साथ आसानीसे सहानुभूति रखी जा सकती है।

अब फिर मुख्य बात। यद्यपि थोड़े-से लोगोंने उक्त तारका ठीक अभिप्राय समझ लिया, परन्तु अधिकतर लोगोंका विचार भारतमें प्रकाशित पुस्तिकाके विषयमें वही रहा जो कि उक्त तारसे बन गया था। इस कारण समाचार-पत्रोंमें यूरोपीयोंको भारतीयोंके विरुद्ध भड़कानेवाली चिट्ठी-पत्री प्रकाशित होती रही। १८ सितम्बर, १८९६ को मैरित्सबर्गमें एक सभा करके 'यूरोपीय रक्षक संघ' नामक एक संस्थाका संगठन कर लिया गया। समाचारके अनुसार इस सभामें केवल ३० व्यक्ति उपस्थित थे। यद्यपि यह सभा ऊपर वणित न्यास-निकायकी कार्रवाईका विरोध करने के लिए बुलाई गई थी, फिर भी 'रक्षक संघ' का कार्यक्रम बड़ा लम्बा-चौड़ा है।

८ अक्तूबर, १८९६ के 'नेटाल विटनेस' के अनुसार रक्षक संघका मुख्य प्रयत्न उपनिवेशम एशियाइयोंका प्रवेश नियंत्रित करनेवाले कानूनोंमें और भी सुधार करवानेका रहेगा; और वह ये काम करवाने पर विशेष ध्यान देगा : (क) भारतीयों तथा अन्य एशियाइयोके आगमनसे सम्बन्ध रखनेवाले सब संगठनोंको सरकारी सहायता य प्रोत्साहन दिया जाना बन्द करवाना; (ख) संसदको ऐसे नियम तथा कानून बनाने की आवश्यकताका निश्चय कराना जिनसे कि भारतीय लोग अपना गिरमिटिया काल समाप्त होनेपर उपनिवेश छोड़ जानेके लिए सचमुच विवश हो जायें; (ग) ऐसे सब उपाय करना जो कि उपनिवेशमें लाये जानेवाले भारतीयोंकी संख्या सीमित करनेके