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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

लिए उचित जान पड़ें; और (घ) नेटालमें भी आस्ट्रेलियाके प्रवासियों-सम्बन्धी कानूनोंको लागू करवानेका प्रयत्न करना।

इसके पश्चात २६ नवम्बर, १८९६ को डर्बनमें औपनिवेशिक देशभक्त संघ नामसे एक संस्था संगठित की गई। इस संस्थाका लक्ष्य "देशमें स्वतन्त्र एशियाइयोंका और अधिक आगमन रोकना" बतलाया गया है। उसके द्वारा प्रकाशित वक्तव्यमें निम्नलिखित अनुच्छेद उपलब्ध है :

उपनिवेशमें एशियाई जातियोंकी और भरमार रोककर यूरोपीयों, वतनियों और देशमें इस समय विद्यमान भारतीयोंके हितोंकी रक्षा की जायेगी। संघ गिरमिटिया मजदूरोंके आगमनमें हस्तक्षेप नहीं करेगा, बशर्ते कि उनको अपना गिरमिटिया-काल पूरा करने के बाद अपने बाल-बच्चोंके साथ, यदि कोई हों तो, भारत लौटाया जा सके।

यह संघ सरकारके नाम निम्न प्रार्थनापत्र पर लोगोंके हस्ताक्षर करवाने का प्रयत्न कर रहा है :

हम नीचे हस्ताक्षर करनेवाले नेटाल उपनिवेशके निवासी सरकारसे सादर प्रार्थना करते हैं कि वह ऐसे उपाय करे कि इस उपनिवेशमें एशियाई जातियोंकी भरमार रुक जाये : (१) आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंडके ब्रिटिश उपनिवेश हमसे पुराने और अधिक संपन्न है। उन्होंने भी अनुभव कर लिया है कि प्रवासियोंका यह वर्ग वहाँके निवासियोंके वास्तविक हितोंका घातक है, और इसलिए उन्होंने ऐसे कानून पास कर दिये हैं जिनका लक्ष्य एशियाइयोंका आगमन सर्वथा रोक देनेका है। (२) इस उपनिवेशमें गोरी और काली जातियोंका अनुपात पहले ही इतना विषम है कि उसे और अधिक बढ़ाना अत्यन्त अनुचित जान पड़ता है। (३) एशियाई जातियोंको यहाँ आते रहने देनेसे इस उपनिवेशके वतनियोंकी भारी हानि हो जायेगी, क्योंकि जबतक सस्ते एशियाई मजदूर मिलते रहेंगे तबतक वतनियोंकी सभ्यताकी उन्नति रुकी रहेगी। उनकी उन्नति तभी हो सकती है जब कि वे गोरी जातियोंके साथ मिलते-जुलते रहें। (४) एशियाइयोंके हीन आचार और अस्वास्थ्यकर आदतोंके कारण, यूरोपीय आबादीकी प्रगति और स्वास्थ्यपर सदा संकट छाया रहता है।

संघके इस कार्यक्रमके साथ सरकारने अपनी पूर्ण सहानुभूतिकी घोषणा कर दी है। जब प्रवासी कानून संशोधन विधेयक पास हुआ था[१] तब आपके प्रार्थियोंने भय प्रकट किया था कि प्रवासियोंके आगमनपर प्रतिबन्ध लगाने का यह एक नया उपाय है। दुर्भाग्यवश इस विधेयकपर अब ब्रिटेनकी सरकार भी अपनी स्वीकृति दे चुकी

  1. यह ७ जुलाई, १८९४ को पास हुआ था; देखिए खण्ड १, पृ॰ १६३।