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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

भी नहीं—जो कि गिरमिटिया भारतीय कर रहे हैं। सरकारके प्रवास-विभागकी रिपोर्ट में बतलाया गया है कि इस आन्दोलनके बावजूद गिरमिटिया भारतीयोंकी माँग पहले की अपेक्षा कहीं अधिक बढ़ गई है। इससे प्रमाणित होता है कि वतनी लोग भारतीयोंका स्थान नहीं ले सकते। इस रिपोर्टमें यह भी बतलाया गया है कि स्वतन्त्र भारतीयों और बतनियोंमें कोई मुकाबला नहीं है, और संघको आपत्ति स्वतन्त्र भारतीयोंके ही विरुद्ध है। भारतीयोंके विरुद्धहीन आचार और अस्वास्थ्यकर आदतोकी जो शिकायत की गई है, उसके विषयमें प्राथियोंको कूछ कहने की आवश्यकता नहीं है। उससे तो सिर्फ यही पता लगता है कि इस प्रार्थनापत्रके पुरस्कर्ताओंको राग-द्वेषने कितना अन्धा कर दिया है। प्रार्थी सम्राज्ञीकी सरकारका ध्यान केवल डॉ॰ वील और इसी प्रकारके उन प्रमाणपत्रोंकी ओर खींचनेकी अनुमति चाहते हैं जो कि ट्रान्सवालभारतीयोंके पंच-फैसले-सम्बन्धी प्रार्थनापत्रके साथ नत्थी किये गये थे। उन प्रमाणपत्रोंमें बतलाया गया है कि वर्गकी दृष्टिसे देखा जाये तो भारतीय लोग यूरोपीयोंकी अपेक्षा अधिक अच्छी तरह और अधिक अच्छे निवास स्थानोंमें रहते हैं।[१] परन्तु यदि भारतीय यूरोपीयोंके बराबर सफाईका ध्यान नहीं रखते तो ऐसे कानून मौजूद हैं जिनसे उन्हें स्वच्छताके नियमोंसे सम्बन्धित कर्तव्योंका पालन करने के लिए विवश किया जा सकता है। कुछ हो, इन सभाओंने, इनके कारण समाचार-पत्रोंमें चली हुई चिट्ठी-पत्रीने और कोई विशेष चिन्ता किये बिना इनमें कही गई बातोंने जनताकी उत्तेजना कायम रखी और उसे बढ़ावा दिया।

१८ दिसम्बरको दोनों अभागे जहाज 'कूरलैंड' और 'नादरी' यहाँ पहुँचे। इनमें से पहलेकी मालिक तो एक स्थानीय भारतीय पेढ़ी है और दूसरेकी पर्शियन स्टीम नैविगेशन कम्पनी, बम्बई; जिसके एजेंट भी पहले जहाजके मालिक ही हैं। इन जहाजों की पहुँचके बादकी घटनाओंका जिक्र करने में प्राथियोंका इरादा कोई निजी शिकायत करने का बिलकुल नहीं है। इस प्रश्नका इन दोनों जहाजोंकी मालिक और एजेंट दादा अब्दुल्ला ऐंड कम्पनीसे जो सम्बन्ध है, उसकी चर्चा करना प्रार्थी यथाशक्ति टालेंगे। उसका वे केवल उतना जिक्र करेंगे जितना समस्त भारतीय समाजके हितकी दृष्टिसे करना आवश्यक होगा। जब जहाज बम्बईसे चले तब उनको दिये गये स्वास्थ्यसम्बन्धी कागजातमें केवल इतना लिखा था कि बम्बईके कुछ भागोंमें हलका गिल्टीवाला प्लेग फैला हुआ है। इसलिए वे खाड़ीमें संक्रामक रोग-सम्बन्धी संगरोधका झंडा चढाये प्रविष्ट हुए; यद्यपि सारी यात्रामें एक भी व्यक्ति बीमार नहीं हुआ था (देखिए परिशिष्ट क और ख)। जहाज 'नादरी' बम्बईके प्रिन्सेज़ जहाज-घाटसे २८ नवम्बर १८९६ को और 'कूरलैंड' ३० को चला था। उनके यहाँ पहुँचनेपर, स्वास्थ्य अधिकारीने उन्हें, "बम्बईसे चलने के बाद २३ दिन पूरे होने तक" संगरोधम रहने की आज्ञा दी। १९ दिसम्बर, १८९६ को एक 'असाधारण सरकारी गजट' प्रकाशित करके उसमें बम्बई को रोग-ग्रस्त क्षेत्र घोषित कर दिया गया। उसी दिन जहाजोंके मालिकों और एजेंटोंने,

  1. देखिए खण्ड, १ पृ॰ २२१–२२