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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

"हम तैयार है और संगरोधन-अधिकारीकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।" इसपर डॉ॰ बर्टवेलने जाकर जहाजोंको देखा और कहा कि मेरी आज्ञाओंका पालन जिस प्रकार किया गया है उससे मैं सन्तुष्ट हूँ; परन्तु फिर भी उन्होंने जहाजोंके उस तारीखसे १२ दिन तक और संगरोधनमें रखे जानेकी आज्ञा दी। तब 'कूरलैंड' के मास्टरने सन्देश भेजा कि :

सरकारको आज्ञासे सब यात्रियोंके बिछौने जलाये जा चुके हैं, इसलिए सरकारसे प्रार्थना है कि वह तुरन्त नये कपड़े भेजे। उनके बिना यात्रियों के जीवनको जोखिम है। मैं चाहता हूँ कि मुझे लिखकर हिदायत दी जाये कि संगरोधन कितने दिन चलेगा, क्योंकि जबानी आज्ञा जब-जब संगरोधन-अधिकारी आता है तब-तब बदल जाती है। इस बीच कोई भी यात्री बीमार नहीं हुआ। सरकारको इत्तला दीजिए कि हमारा जहाज बम्बईसे चलनेके बाद प्रतिदिन शोधा जाता रहा है।

'नादरी' से ३० दिसम्बरको यह सन्देश भेजा गया :

सरकारसे कहिए कि उसने जो कपड़े जलवा दिये हैं उनकी जगह वह तुरन्त ही २५० कम्बल भेज दे। यात्री उनके बिना बहुत कष्टमें हैं। नहीं तो यात्रियोंको तुरन्त उतारा जाये। यात्री सर्दी और सीलसे पीड़ित हैं। भय है कि वस्त्रोंके बिना बीमारी न फैल जाये।

इन सन्देशोंपर सरकारने कोई ध्यान नहीं दिया। परन्तु सौभाग्यवश, डर्बनके भारतीय नागरिकोंने एक संगरोधन-सहायता-निधि खोल दी, और उसके द्वारा तुरन्त ही दोनों जहाजोंके सब यात्रियोंके लिए कम्बल तथा गरीब यात्रियों के लिए मुफ्त खाद्य-पदार्थ भेजे गये। इस सबपर कमसे कम १२५ पौंडका व्यय हुआ।

जिस समय जहाजोंपर यह कार्रवाई चल रही थी, उसी समय उनके मालिक और एजेंट संघरोधके, और उसके कुछ सनकी तरीकेके खिलाफ, क्योंकि वह बारबार बदलकर लागू किया जा रहा था, प्रतिवाद करने में लगे हुए थे। उन्होंने गवर्नर साबको एक प्रार्थनापत्र भेजा कि इसमें लिखे हुए कारणोंसे बन्दरगाहके चिकित्साधिकारीको "जहाजोंको यात्री उतारने की इजाजत दे देने के लिए कह दिया जाये"(परिशिष्ट ज)। इस प्रार्थनापत्रके साथ डॉक्टरोंके इस आशयके प्रमाणपत्र भी नत्थी कर दिये गये थे कि उनकी सम्मतिमें जो संगरोधन जारी करने का इरादा किया गया था, और जो बादमें जारी कर दिया गया, वह अनावश्यक था (परिशिष्ट ज के संलग्न पत्र ज क और ज ख)। मालिकोंके सॉलिसिटरोंने तार भेजकर अनुरोध किया कि इस प्रार्थनापत्रका उत्तर शीघ्र दिया जाये (परिशिष्ट झ), परन्तु कोई उत्तर नहीं आया। २४ दिसम्बरको मालिकोंके सॉलिसिटरोंने स्थानापन्न स्वास्थ्य-अधिकारीको लिखा कि उनके पत्र में लिखित कारणोंसे दोनों जहाजोंको यात्री उतारने की इजाजत दे देनी चाहिए (परिशिष्ट ब)। उक्त अफसरने उसी दिन उत्तर दिया :

मैं, स्वास्थ्य अधिकारीको हैसियतसे, सब हितोंका उचित ध्यान रखते हुए अपना कर्तव्य पालन करने का यत्न कर रहा हूँ। मैं इस बातके लिए तैयार हूँ