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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

है, फिर भी उन्हें आपकी प्रस्तावित विधिके अनुसार शोधने के लिए अबतक कुछ नहीं किया गया। उन्होंने यह भी लिखा कि हमारे मुवक्किल, यात्रियोंको तटपर संगरोधनमें रखने आदिकी किसी भी कार्रवाईमें भाग लेनेको तैयार नहीं हैं, क्योंकि यात्रियोंको उतारने की इजाजत न देनेकी आपकी कार्रवाईको वे कानून-संगत नहीं मानते। उन्होंने यह भी बतलाया कि आपसे पहले के स्वास्थ्य-अधिकारीने "अपना यह मत प्रकट किया था कि जहाजोंको यात्री उतारने की इजाजत बिना किसी खतरेके दी जा सकती है, और यदि उसे वैसा करने दिया जाये तो वह अनुमतिपत्र दे देगा; परन्तु इसपर उसे मअत्तिल कर दिया गया।" और "पहले तो श्री एस्कम्बने इस विषयमें डॉ॰ मैकेंजी और डॉ॰ ड्यूमासे खानगी तौरपर बातचीत की और फिर श्री एस्कम्बकी ही सूचनासे आपने उन दोनोंको यात्री उतारने की अनुमति देनेसे इनकार करने के विषयमें अपना अभिप्राय देने के लिए बुलाया" (परिशिष्ट त)।

जब सरकार और मालिकोंके सॉलिसिटरोंमें संगरोधके प्रश्नपर इस प्रकार पत्रव्यवहार चल रहा था और जब दोनों जहाजोंके यात्रियोंको भारी कष्ट और कठिनाइयोंका सामना करना पड़ रहा था, उसी समय संगरोधमें पड़े हुए यात्रियोंको किनारेपर न उतरने देने के लिए, डर्बनमें एक आन्दोलन खड़ा किया जा रहा था। ३० दिसम्बरको 'नेटाल एडवर्टाइज़र' में, सम्राज्ञीके एक कमिशन-प्राप्त अधिकारी तथा "प्रारम्भिक सभाके अध्यक्ष हैरी स्पार्क्स" के हस्ताक्षरसे पहली बार यह विज्ञापन निकला : आवश्यकता है, डर्बनके एक-एक मर्दकी, एक सभामें हाजिर होनेके लिए -सोमवार, ४ जनवरीको सायंकाल ८ बजे विक्टोरिया कैफेके बड़े कमरे में। सभाका प्रयोजन : एक जुलूसका संगठन करना, जो जहाज-घाटपर जाये और एशियाइयोंके उतारे जानके विरुद्ध आवाज बुलन्द करे।

यह सभा आखिर डर्बनके नगर-भवनमें हुई। उसमें उत्तेजनापूर्ण भाषण हुए, और कप्तान स्पार्क्सके अतिरिक्त कई कमिशन-प्राप्त अधिकारियोंने भी उसकी गरमागरम कार्रवाईमें भाग लिया। बताया जाता है कि सभामें उपस्थिति लगभग २,००० की थी, और उसमें अधिकतर लोग कारीगर थे। उसमें निम्न प्रस्ताव पास किये गये :

इस सभाका दृढ़ मत है कि अब समय आ गया है कि इस उपनिवेशमें, और अधिक स्वतन्त्र भारतीयों या एशियाइयोंको उतरने से रोक दिया जाये। इसलिए यह सभा सरकारको आदेश देती है कि इस समय 'नादरी' और 'कूरलैंड' जहाजोंपर जो एशियाई मौजूद है, उन्हें वह उपनिवेशके खर्चपर भारत लौटा देनेके उपाय करे, और दूसरे भी जो कोई स्वतन्त्र भारतीय या एशियाई डर्बनमें उतारे जायें, उन्हें रोके।

सभामें उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति इस प्रस्तावसे सहमत है, और इसे कार्यान्वित करने में सरकारको सहायता देनेके लिए अपने-आपको पाबन्द करता है कि उसका देश उससे जो चाहेगा, सो वह करेगा। और इस दृष्टिसे, यदि