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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

आवश्यकता होगी तो उसे जब भी कहा जायेगा, वह बन्दरगाहपर जाने को तैयार रहेगा।

दूसरा प्रस्ताव डॉ॰ मैकेंजीने पेश किया था। जैसाकि पहले लिखा जा चुका है, वे उन लोगोंमें से थे जिन्हें श्री एस्कम्बने संगरोधका समय निश्चित करने के लिए बुलाया था। उनके भाषणके कुछ अंश ये हैं :

श्री गांधी, (देरतक सीटियों और शोर-गुलकी आवाजें) वह भला आदमी नेटाल आया और डर्बन नगरमें बस गया। यहाँ उसका खुला और निःसंकोच स्वागत किया गया। जो भी अधिकार या लाभ इस उपनिवेशमें मिल सकते थे, वे उसे मिले। उसपर ऐसी कोई पाबन्दी या रोक-टोक नहीं लगाई गई जो कि आप लोगों या मुझपर लागू नहीं है। हमारा अतिथि होनेके सब अधिकार उसे मिले। इसके बदलेके तौरपर श्री गांधीने नेटालके उपनिवेशोंपर आरोप लगाया कि वे भारतीयोंके साथ अन्याय और दुर्व्यवहार करते हैं और उन्हें लूटते और ठगते हैं। (एक आवाज—'कुलीको कोई नहीं ठग सकता') में आपसे पूरी तरह सहमत हूँ। श्री गांधी लौटकर भारत गया और वहाँ उसने हमें नालियों में घसीटा और हमारी ऐसी काली और मैली तसवीर खींची जैसी कि उसकी अपनी खाल है। (तालियाँ) और इस व्यवहारको ये लोग, अपनी भारतीय बोलचालमें, नेटाल द्वारा दिये हुए अधिकारोंका सम्मानपूर्ण तथा वीरोचित बदला चुकाना कहते हैं।. . .इन नरम और नाजुक जीवधारियोंका इरादा था कि ये उस एक चीजके भी मालिक बन बैठे जो कि उन्हें इस देशके शासकोंने नहीं दी थी—अर्थात् मताधिकार। इनका इरादा था कि वे संसदमें घुस जायें और यूरोपियोंके लिए कानून बनाने लगें; खुद घरके प्रबन्धक बन बैठे, और यूरोपीयोंको रसोईके कामपर रखें।. . .हमारे देशने फैसला किया है कि यहाँ अब एशियाई और भारतीय बहुतेरे आ चुके हैं, और यदि वे सीधे रहे तो हम उनके साथ उचित और अच्छा व्यवहार करेंगे; परन्तु यदि वे गांधी-जैसे लोगोंका साथ देने लगे, हमारे आतिथ्यका दुरुपयोग करने लगे, वैसे ही काम करने लगे जैसेकि गांधीने किये हैं, तो उन्हें अपने साथ भी उसी व्यवहारको आशा करनी चाहिए जो कि गांधीके साथ किया जानेवाला है। (तालियाँ) यह इन लोगोंका कितना ही बड़ा दुर्भाग्य क्यों न हो, मैं काले और गोरेमें भेदको मनसे नहीं निकाल सकता।—'नेटाल एडवर्टाइज़र', ५ जनवरी।

इसपर कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं। अबसे पहले जो-कुछ बताया गया है उससे स्पष्ट हो चुका है कि श्री गांधी विषयमें जो कहा गया, उसके लायक उन्होंने कुछ भी नहीं किया था। भारतीय लोग कानून बनाने का अधिकार लेना और यूरोपीयोंको रसोईघरमें रखना चाहते हैं, यह केवल इस बहादुर डॉक्टरके उर्वर मस्तिष्ककी उपज है। इन और ऐसे अन्य भाषणोंका यहाँ जिक्रतक न किया

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