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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

आड़में कलम थामकर बैठे हुए लोग कैसे हैं, यह तो हम अखबारोंके कुछ अग्रलेखोंकी ध्वनि और उनमें दिये हुए कुछ सतर्कता और चतुराईके उपदेशोंसे ही जान ले सकते हैं। ऐसे आदमी, जो इस तरहकी बातोंपर जोर देते हैं, यह मानते हैं कि नागरिकजन जानते ही नहीं, सही क्या है।. . .बाहर खड़े जहाजोंपर मौजूद आदमियोंमें से, एकके सिवा और किसीको ऐसा सन्देह करने का कारण नहीं है कि इस उपनिवेशमें प्रवासियोंके तौरपर, उनका स्वागत खुशीसे नहीं किया जायेगा। निःसन्देह एक आदमीको इस सम्बन्धमें सन्देह करने का कुछ कारण हो सकता है। वह भलामानुस (गांधी) इनमें से एक जहाजपर है। और इस समय मैं जो-कुछ कह रहा हूँ उसमें मैं उसकी चर्चा नहीं कर रहा। हमें बन्दरगाहको बन्द करने का अधिकार है, और हम उसको बन्द करने का इरादा रखते हैं। (तालियाँ) हम लोगोंके साथ, इन जहाजोंके यात्रियोंके साथ उचित सलूक करेंगे, और एक हदतक उस खास व्यक्तिके साथ भी वैसा ही करेंगे। परन्तु मुझे आशा है कि हमारे सलूकमें साफ फर्क रहेगा। जब हम बन्दरगाह पर पहुंचेंगे तब हम अपने-आपको अपने नेताके सुपुर्द कर देंगे और अगर उसने हमसे कुछ करने को कहा तो हम ठीक वही करेंगे जो वह हमसे कहेगा (हंसी)।

प्रदर्शन-समितिने डर्बनके कर्मचारियोंमें एक पत्र घुमाया, जिसके ऊपर लिखा था :

उन सदस्योंके नामोंकी व्यापार या व्यवसाय-सहित सूची,[१] जो बन्दरगाहपर जाने, यदि आवश्यकता हो तो एशियाइयोंको उतरने से जबरदस्ती रोकने और अपने नेताओंकी किन्हीं भी आज्ञाओंको मानने के लिए तैयार हैं।

७ तारीख की सभाके अन्त में कप्तान स्पार्क्सने जो भाषण किया था उसके निम्न अंशसे इस बातका कुछ अन्दाज लग सकता है कि समितिने प्रदर्शनमें शामिल होनेके लिए लोगोंकी भरती किस प्रकार की थी :

हम नगरके व्यापारियोंसे आग्रह करना चाहते हैं कि वे अपनी-अपनी दूकानें और दफ्तर बन्द कर दें, जिससे कि जो लोग प्रदर्शनमें भाग लेना चाहे वे वैसा कर सकें। (तालियाँ) इससे हमें पता लग जायेगा कि कौनकौन हमारे साथ हैं। कई व्यापारी पहले ही हमें वचन दे चुके हैं कि उनसे जो हो सकेगा वह सब वे करेंगे। शेष सबकी हम असली कलई खोल देना चाहते हैं। ('उनका बहिष्कार करो' की आवाजें)

यहाँ यह भी जान लेना उचित होगा कि यात्रियोंको शांतिपूर्वक उतरने देनेके लिए जहाजोंके मालिकों और सरकारके बीच क्या हो रहा था। प्रार्थी यहाँ बतलाना चाहते हैं कि जनवरीके प्रथम सप्ताहमें नगर पूर्णतया उत्तेजित अवस्थामें था। नगरके भारतीय निवासियोंके लिए यह समय भय और चिताका था, और डर इस बात का

  1. देखिए पृ॰ १७०–७२।