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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

किया जा चुका है। इससे यह भी मालूम पड़ा है कि सरकार इन बातोंको मानती थी :

संगरोधकी शर्ते पूरी हो चुकनेपर 'कूरलैंड' और 'नादरी' जहाजोंको यात्री उतारने की इजाजत अवश्य दे दी जानी चाहिए। यह इजाजत मिल जानेपर जहाजोंको अधिकार होगा कि वे अपने यात्री व माल घाटपर उतार दें। ऐसा वे चाहे तो स्वयं घाटपर आकर करें और चाहे छोटी नावोंके द्वारा। यात्रियों और माल की दंगाइयोंसे रक्षा करने की जिम्मेदारी सरकारको है।

११ जनवरीके पत्र (परिशिष्ट प) के उत्तरमें कहा गया कि इसमें जिस भेंटकी चर्चा की गई है उसे आपसमें गुप्त ही रखने का समझौता हो गया था और श्री लॉटनके पत्रमें जो बातें माननीय श्री एस्कम्ब और श्री लॉटन द्वारा कही गई बतलाई गई हैं, वे ठीक नहीं हैं। १२ जनवरीको इसके उत्तरमें मेसर्स गुडरिक, लॉटन ऐंड कुकने लिखा कि श्री लॉटनने उक्त मुलाकातको निजी क्यों नहीं माना, और प्रार्थना की कि श्री लॉटनके विवरणमें जो भूलें रह गई हों उन्हें सुधार दिया जाये, जिससे कि परस्पर कोई भ्रम न रहे (परिशिष्ट फ)। जहाँतक आपके प्रार्थियोंको ज्ञात है इस पत्रका कोई उत्तर नहीं दिया गया। जहाजके मालिकोंने, उसी दिन, सरकारके मुख्य उपसचिवके ११ जनवरीके पत्रका उत्तर श्री एस्कम्बकी सेवामें भेजा (परिशिष्ट ध), और उसमें आश्चर्य प्रकट किया कि हमने सरकारका ध्यान जिन अनेक बातोंकी ओर खींचा था, उनका उपसचिवके पत्रमें जिक्र तक नहीं किया गया। उस पत्रका एक अनुच्छेद यह था :

जहाजोंको बन्दरगाहसे परे लंगर डाले हुए आज २४ दिन हो गये। इसका हमपर १५० पौंड प्रतिदिन खर्च पड़ रहा है। इसलिए हमें विश्वास है कि आप हमें कल दुपहर तक पूरा उत्तर दे देनेका औचित्य समझेंगे। हम आपको यह सूचना दे देना भी उचित समझते हैं कि यदि हमें ऐसा कोई उत्तर न मिला, जिसमें कि यह आश्वासन दिया गया हो कि हमें गत रविवारसे लगाकर १५० पौंड प्रतिदिनके हिसाबसे हरजाना दिया जायेगा और हम यात्रियों तथा मालको उतार सके इसलिए आप दंगाइयोंको दबाने के उपाय कर रहे हैं, तो हम सरकारके संरक्षणका भरोसा करके जहाजोंको बन्दरगाहमें लानेकी तैयारियाँ एकदम शुरू कर देंगे। हमारा सादर निवेदन है कि सरकार हमें यह संरक्षण देनेके लिए बाध्य है (परिशिष्ट ब)।

इस पत्रका उत्तर श्री एस्कम्बने १३ जनवरीको १०-४५ बजे, जहाज-घाटसे, निम्न प्रकार दिया :

बन्दरगाहके कप्तानने हिदायत दे दी है कि जहाज आज १२ बजे सीमा पार करके घाटपर आनेके लिए तैयार हो जायें। व्यवस्थाको रक्षाके सम्बन्धमें सरकारको उसकी जिम्मेवारीको याद दिलाई जानकी जरूरत नहीं है (परिशिष्ट भ)।