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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

चाबुकोंसे मारने लगे। उनपर सड़ी-गली मछलियाँ और फेंककर मारने की दूसरी चीजें फेंकी गई। उनकी आँखमें चोट लगी और कान कट गया। उनकी पगड़ी उनके सिरपर से उछाल दी गई। जब यह सब हो रहा था तब सुपरिटेंडेंट पुलिसकी पत्नी संयोगवश उधरसे गुजरों और उन्होंने बड़ी बहादुरीसे अपनी छतरी सामने करके भीड़से उनकी रक्षा की। लोगोंकी चीखें और चिल्लाहट सुनकर पुलिस भी मौकेपर पहुँच गई और उन्हें बचाकर एक भारतीयके घरमें ले गई। परन्तु अबतक भीड़ भी बहुत बढ़ चुकी थी। उसने मकानको सामनेकी तरफसे घेर लिया और वह 'गांधीको निकालो' की आवाजें लगाने लगी। अँधेरा घना होने के साथ-साथ भीड़ भी घनी होती चली गई। पुलिस-सुपरिटेंडेंटको भय होने लगा कि भारी दंगा हो जायेगा और लोग जबरन मकान में घुस जायेंगे, इसलिए उसने श्री गांधीको एक पुलिस-सिपाहीकी वर्दी पहनाकर चुपके-से पुलिस-थाने में पहुँचा दिया। आपके प्रार्थी इस घटनासे कोई लाभ उठाना नहीं चाहते। उन्होंने यहाँ इसकी चर्चा केवल घटना-क्रमके एक अंगके रूप में कर दी है। वे यह मान लेनेको तैयार हैं कि यह आक्रमण गैर-जिम्मेदार लोगोंका काम था और इस दृष्टिसे विशेष ध्यान देने योग्य नहीं है। परन्तु साथ ही वे यह कहे बिना नहीं रह सकते कि यदि प्रदर्शन-समितिके जिम्मेवार सदस्योंने लोगोंको उनके विरुद्ध भड़काया न होता और सरकारने समितिकी कार्रवाइयोंको बर्दाश्त न किया होता तो यह घटना कभी न घटी होती। प्रदर्शनकी कहानी यहाँ समाप्त हो जाती है।

अब आपके प्रार्थी प्रदर्शनके तात्कालिक कारणोंपर विचार करने की अनुमति चाहते हैं। समाचार-पत्रोंमें इस आशयके बयान निकले थे कि जहाजोंपर ८०० यात्री हैं और वे सब नेटाल आ रहे हैं। उनमें ५०' लुहार और २० कम्पोज़ीटर हैं और 'कूरलैंड' जहाजपर एक छापाखाना भी आया है; और श्री गांधीने—

यह खयाल करके भारी गलती की कि वह प्रतिमास १,००० से २,००० तक अपने देशवासियोंको यहाँ उतार देनेके लिए भारतमें एक स्वतन्त्र एजेन्सी संगठित कर लेगा,—और नेटालके यूरोपीय चुपचाप बैठे रहेंगे। ('नेटाल मर्क्युरी', ९ जनवरी)।

प्रदर्शनके पश्चात् उसके नेताने एक सभामें उसका कारण इस प्रकार समझाया था :

दिसम्बरके अन्त में मैंने 'नेटाल मर्क्युरी' में एक लेखांश इस आशयका देखा था कि 'कूरलैंड' और 'नादरी' जहाजोंके यात्रियोंकी तरफसे श्री गांधी सरकारपर हरजानेका दावा करने की सोच रहे हैं कि उन्हें संगरोधमें क्यों रखा गया। यह पढ़कर गुस्सेके मारे मेरा खून खौलने लगा। तब मैंने मामला हाथमें लेनका निश्चय किया और डॉ॰ मेकेजीसे मिलकर सुझाया कि इन लोगों के यहाँ उतरने के विरुद्ध प्रदर्शनका संगठन किया जाये।. . .इन सज्जनने अन्समें कहा : मैं स्वयं सैनिक हूँ और २० बर्वतक सेवा कर चुका हूँ।. . .में किसीसे कम राजभक्त नहीं हूँ. . .परन्तु यदि आप एक तरफ भारतीय