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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

भारत से वापस लौट रहे थे। नये आनेवाले १०० से भी कम थे और इनमें भी लगभग ४० स्त्रियाँ थीं जो नेटालवासियोंकी पत्नियाँ या रिश्तेदार थीं। शेष ६० या तो दूकानदार थे, या उनके सहायक और फेरीवाले। जहाजोंपर लुहार या कम्पोजीटर एक भी नहीं था, और न कोई छापाखाना ही था। श्री गांधीने 'नेटाल एडवर्टाइज़र' के प्रतिनिधिके साथ बात करते हए इस बातसे खुल्लमखुल्ला इनकार कर दिया था कि उन्होंने जहाजोंपर कभी किसीको कानूनके खिलाफ संगरोधमें रखे जानेके कारण सरकार पर दावा करने के लिए उकसाया है।[१] इस इनकारीका प्रतिवाद अबतक किसीने नहीं किया है। यह अफवाह फैली कैसे इसका पता आसानीसे लगाया जा सकता है। जो हाल पहले बतलाया जा चुका है उससे प्रकट है कि जहाजोंके मालिकों और एजेंटोंने कानूनके खिलाफ संगरोध और रोक-टोकके कारण सरकारपर दावा करने की धमकी दी थी। अफवाहोंमें दावा करने की बात यात्रियों के सिर मढ़ दी गई, और 'नेटाल मर्क्युरी' ने यह भ्रान्त कल्पना कर ली कि इस मामलेमें श्री गांधीका हाथ अवश्य होगा। श्री गांधीने उसी माध्यम द्वारा इस बातका भी खण्डन किया है कि उनके नेतृत्वमें कोई ऐसा संगठन है, जिसका उद्देश्य इस उपनिवेशको भारतीयोंसे पाट देना है। प्रार्थी सम्राज्ञीकी सरकारको विश्वास दिलाते हैं कि श्री गांधीके अधीन ऐसा कोई संगठन नहीं है। वे तो स्वयं 'कूरलैंड' के एक यात्री मात्र थे। उन्होंने उस जहाजसे यात्रा की, यह भी एक सर्वथा आकस्मिक बात थी। प्रार्थियोंने १३ नवम्बरको[२] उन्हें नेटाल आनेका तार दिया और उन्होंने 'कूरलैंड' जहाजका टिकट खरीद लिया, क्योंकि उस तारीखके बाद नेटालके लिए वही पहला जहाज था जो सुगमतासे मिल सकता था। इन इनकारियोंकी यथार्थता कभी भी आसानीसे मालूम की जा सकती है, और यदि ये सत्य पाई जायें तो आपके प्रार्थियोंका निवेदन है कि नेटाल-सरकारको चाहिए कि वह इनके सम्बन्धमें अपना मत प्रकट करके जनताकी भड़की हुई भावनाको शांत कर दे।

संगरोधके विषयमें भी कुछ घटनाएँ उल्लेखनीय हैं। उनसे प्रकट होता है कि संगरोधकी व्यवस्था उपनिवेशको गिल्टीवाले प्लेगसे बचाने के उपायकी बनिस्बत भारतीयों के विरुद्ध चली गई एक राजनीतिक चाल ही अधिक थी। वह व्यवस्था जब पहले-पहल लागू की गई तब जहाजोंके बम्बईसे चलने के पश्चात् २३ दिन पूरे होनेतकके लिए थी। ऊपर डॉक्टरोंकी समितिकी जिस रिपोर्ट (परिशिष्ट थे) का जिक्र किया गया है, उसमें जहाजोंको शोधने और धूनी लगाने के बाद १२ दिनतक संगरोधमें रखने की सलाह दी गई थी। जहाजोंको शोधने और धूनी लगाने के लिए उनके उर्बन पहुँचने के ११ दिन बादतक कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस बीच, पानी और भोजनकी कठिनाईके उनके सन्देशोंपर भी बड़ी लापरवाहीसे कान दिया गया। कहा जाता है कि महान्यायवादीने खानगी तौरपर डॉक्टरों से बातचीत की और उन्हें संगरोधकी अवधिके

  1. देखिए पृ॰ १३२।
  2. गांधीजी को यह तार १३ नवम्बर को मिला था देखिए पृ॰ १०२।