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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पड़ा और उन्हें उतरने से रोकने की हिंसामय धमकियाँ देने लगा। डर्बनके लोगों को, जो इस आन्दोलनके साथ हैं, इतनी ज्यादती करने के बाद, उनके इस रुखके लिए, बधाई देना मुश्किल है। उनका इतना आगे बढ़ जाना दुर्भाग्यको बात है, क्योंकि इस समय चाहे जो-कुछ हो, अन्तमें उन्हें निश्चय ही निराशाका सामना करना और नीचा देखना पड़ेगा।. . .सब-कुछ कहने और करने के बाद भी सचाई यह है कि नटालके लोगोंकी बहुत बड़ी संख्या जानती है कि इस उपनिवेशमें भारतीयोंके आगमनसे उनको बहुत अधिक लाभ हुआ है। ऐसी कल्पना करना ठीक ही होगा कि नेटालमें निरन्तर नये-नये भारतीयोंका आगमन उनकी इस जानकारीका ही परिणाम है कि उनसे पहले आनेवालों को अपनी नयी स्थितिमें सुख मिला था। अब सवाल यह हो सकता है कि नेटालमें आनेवाले पहले भारतीयोंकी यदि यूरोपीय लोग किसी भी प्रकार सहायता न करते तो वे सुखी और समृद्ध हो ही कैसे सकते थे? और इसीलिए यह भी कल्पना की जा सकती है कि यूरोपीय लोग इन आगत भारतीयोंकी समृद्धिमें सहायक न होते, यदि इस सहायताके कारण उन्हें अपनी समृद्धिमें भी सहायता न मिलती। जो भारतीय नेटालमें आये वे दो प्रकारके थे—एक गिरमिटिया और दूसरे स्वतन्त्र। इन दोनोंका अनुभव यह है कि ऊपरी विरोधके बावजूद यूरोपीय उन्हें काम या 'सहायता' देनेके लिए तैयार रहते हैं और इस प्रकार वे न केवल उनको समृद्ध बनाकर सुखी और सन्तुष्ट करते हैं, बल्कि अधिक संख्यामें आनेके लिए भी उत्साहित करते हैं। गिरमिटिया भारतीयोंमें से अधिकतर का उपयोग यूरोपीय किसान करते हैं। स्वतन्त्र भारतीयोंमें से जो लोग व्यापार करना चाहते हैं उनको सहायता यूरोपीय व्यापारी करते हैं। शेष सबको यहाँ आने और बस जानेका उत्साह इस कारण होता है कि उन्हें किसी-नकिसी प्रकारको घर-गृहस्थीको नौकरी मिल जाती है। गिरमिटिया भारतीयोंकी आवश्यकता नेटालको अनिवार्य रूपसे है, क्योंकि काफिर लोगोंमें से जो मजदूर मिलते हैं, वे लापरवाह और अविश्वसनीय होते हैं। इसका प्रमाण यह है कि, हजारों भारतीय खेतों और घरेलू नौकरियोंमें लगे हुए हैं, और प्रायः प्रत्येक डाकसे सैकड़ोंकी और माँग भारतको भेजी जाती है। "परन्तु", बहुधा कह दिया जाता है, "आपत्ति गिरमिटिया भारतीयोंके आनेपर नहीं, स्वतन्त्र भारतीयों के आनेपर है।" तथापि, पहली बात यह है कि गिरमिटिया कुलोको भी आखिर स्वतन्त्र होना ही है। और इस प्रकार नेटालके लोग भारतीयोंको गिरमिटियोंके रूपमें बुलाकर व्यवहारतः स्वतन्त्र भारतीयोंकी आबादीके निरन्तर बढ़ते रहने का मार्ग खोल देते हैं। यह सही है कि गिरमिटिया भारतीयोंका इकरारनामा समाप्त हो जानेपर उन्हें वापस लौटा देनेका प्रयत्न किया गया है, परन्तु अभीतक इस प्रकारके किसी कानूनको अनिवार्य नहीं बनाया जा