पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/२०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८१
प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

उनकी ठोस सहायता करने में कोई संकोच नहीं करते।—'टाइम्स ऑफ नेटाल', ८ जनवरी, १८९७।

प्रदर्शन-आन्दोलनके नेताओंने गुरुवारकी सभामें अपने सिर गम्भीर जिम्मेवारी ले ली थी। कुछ भाषण सौम्यताके लिए उल्लेखनीय नहीं थे। उदाहरणार्थ, डॉ॰ मैकेंजीने उतनी समझदारी नहीं बरती जितनी कि वे बरत सकते थे। उन्होंने श्री गांधीके साथ व्यवहारके सम्बन्धमें जो कलुषित संकेत किये, वे अत्यन्त असावधानतापूर्ण थे। कहा जाता है कि 'कूरलैंड' और 'नादरी' जहाजोंसे भारतीयोंके उतरने के समय जो लोग जहाज-घाटपर एकत्र होंगे वे "शांत" रहेंगे। परन्तु इस बातकी क्या गारंटी है कि जब भीड़ भड़की हुई होगी, तब किसी भारतीय यात्रीके शरीरको कोई चोट आदि नहीं लगेगी? और यदि प्रदर्शनके समय कोई झगड़ा हो गया तो उसके लिए मुख्यतः, और नैतिक दृष्टिसे जिम्मेवार कौन होगा? हो सकता है कि एक या एक-सौ नेता कुछ हजार नागरिकोंको शांत रहने के लिए प्रेरित करते रहें। परन्तु जिस भीड़के हृदय में स्वतन्त्र भारतीयोंके विरुद्ध तीन द्वेषकी आग जल रही है और जो हालके आन्दोलन और एशियाइयों तथा श्री गांधोके आगमनके कारण भड़की हुई है, उसपर ये नेता क्या नियन्त्रण रख सकेंगे? —नेटाल एडवर्टाइज़र', ९ जनवरी, १८९७।

वर्तमान आन्दोलन मुख्यतया प्रवासी-निकाय द्वारा भारतीय कारीगरोंको लानके प्रयत्नका परिणाम है। उसको स्थानीय पत्रोंने तुरन्त और बलपूर्वक निन्दा की थी. . .परन्तु पत्र बहुत आगे नहीं बढ़े और उन्होंने असामयिक तथा असंयत प्रयत्नोंका समर्थन नहीं किया, इसलिए उनकी अनाप-शनाप शब्दोंमें निन्दा की गई।. . .साम्राज्य-सरकार एशियाइयोंको रोकने के लिए कोई कठोर उपाय करने को तैयार नहीं हुई, केवल इस कारण हम उसकी निन्दा नहीं कर सकते। हम यह नहीं भल सकते कि अभी, इस क्षणतक, स्वयं नेटालसरकारके तन्त्रका उपयोग हमारी स्वार्थ-सिद्धिके लिए एशियाइयोंको यहाँ बुलानेके लिए किया जाता रहा है। एक दलील दी जा सकती है कि गिरमिटिया भारतीयोंके आनेपर वही आपत्ति नहीं, जो स्वतन्त्र भारतीयोंके आनेपर की जाती है, जो बिलकुल ठीक है। परन्तु क्या साम्राज्य-सरकारको, और भारत-सरकारको भी, यह दिखलाई नहीं देगा कि हम यह भेद केवल अपने स्वार्थके लिए कर रहे हैं? यह किसी भी प्रकार न्याय-संगत नहीं है कि हम अपने लाभके लिए भारतीयोंके एक वर्गको तो यहाँ आनेको प्रोत्साहित करें और दूसरे वर्गका प्रवेश रोक देनके लिए इस बिनापर चीख-पुकार मचायें कि, हमारा खयाल है, उससे हमको कुछ हानि हो सकती है।—'नेटाल एडवर्टाइज़र', ११ जनवरी, १८९७।

डर्बनवालों की नीति अशिष्ट और लठ्ठ-मार है। वहाँ सरकारोंकी समन्वित नीति अथवा कूटनीतिक विचार-विनिमय-जैसी कोई चीज नहीं है। साराका-सारा