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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

नगर जहाज-घाटपर पहुँच जाता है और ऐलान कर देता है कि यदि साम्राज्यकी कुछ प्रजाओंने तटपर उतरने के अपने असंदिग्ध अधिकारका प्रयोग किया तो हम उनका खून कर देंगे। व्यक्तिगत रूपसे तो ये लोग मितव्ययी भारतीयोंसे सस्ता माल खरीदने को तैयार रहते हैं, परन्तु सामूहिक रूपमें अपने-आपपर और एक-दूसरेपर अविश्वास करते हैं। खेदकी बात यह है कि आन्दोलनकारियोंकी आपत्तिका आधार ही गलत है। वास्तविक शिकायत आर्थिक है। उसका आधार एक ऐसा अनुभव है, जिसका सिद्धान्त सबकी समझमें नहीं आता। उसे दूर करने का सर्वोत्तम और शांतिपूर्ण उपाय यह है कि व्यापाररक्षक सभाओंका संगठन कर लिया जाये, जो कि निम्नतम मूल्य और अधिकतम पारिश्रमिकका निश्चय कर दें।. . .डर्बन स्वेजके पूर्वमें नहीं है, हालाँकि वह लगभग उसी महा गोलार्धमें है। परन्तु प्रतीत होता है कि डर्बनवाले उन लोगोंमें से हैं जिनके बीच 'बाइबिलकी दस आज्ञाओंका अस्तित्व ही नहीं है', फिर साम्राज्यके कानूनोंकी तो बात ही क्या। गलियोंमें एक-दूसरेपर गोलियाँ बरसा कर सुधार करने का तरीका सभ्य लोगोंका नहीं है। यदि आर्थिक व्यवहारके नियम उन्हें बहुत कठिन लगते हैं तो उन्हें कमसे-कम कानूनको हदमें तो रहना चाहिए। यह तरीका दंगा करनेसे और किसी आन्दोलनकारी द्वारा हजारों आदमियोंको हथियार बाँधकर खड़ा हो जानेके लिए उकसाने से कहीं अच्छा है। ब्रिटेन अपने भारतीय साम्राज्यके सहस्रों लोगोंको अपमानित होते नहीं देख सकता, न वह वैसा करना पसन्द करता है। ब्रिटिश द्वीपोंमें संरक्षणको व्यापारनीतिका तीव्र विरोध किया जाता है, और मुक्त-द्वार व्यापारको बाइबिलके प्रथम चार और अन्तिम छह नियमोंके मध्यका मार्ग माना जाता है। यदि डर्बनवाले स्वतन्त्रता चाहते हैं तो उन्हें वह माँगने-मानसे मिल सकती है। परन्तु वहाँवाले ब्रिटिश द्वीपोंसे यह आशा नहीं रख सकते कि वे उनको कानून-विरोधी कार्रवाइयोंको सह लेंगे या अवैधानिक आन्दोलनको प्रोत्साहित करेंगे। —'डिगर्स न्यूज', १२ जनवरी, १८९७।

नेटालवाले पागल हो गये मालूम पड़ते हैं। वे घृणा और क्रोधके मारे अन्धे होकर बहुनिन्दित 'कुलियों के विरुद्ध बलका प्रयोग करना चाहते हैं। उन्होंने एक स्थानीय कसाईके नेतृत्वमें एक प्रदर्शनका संगठन किया है, और सारा शहर और उपनिवेश इस चीख-पुकारका साथ देने लगा है। इन प्रदर्शनकारियोंके अव्यावहारिक आदर्शवादपर तरस आता है। इनके प्रत्येक सदस्यने प्रतिज्ञा की है कि वह बन्दरगाहपर जायेगा और 'यदि आवश्यकता हुई तो' एशियाइयों को उतरनेसे 'बलपूर्वक' रोक देगा। यह भी बतलाया गया है कि इस प्रदर्शन में भाग लेनेवाले सिद्ध कर देना चाहते हैं कि उनकी कथनी और करनी में अन्तर नहीं है, और डर्बनवाले ऐसे व्यवस्थित परन्तु प्रभावशाली संगठनका प्रदर्शन कर