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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

सकते हैं जो कि दंगा मचानेवाली भीड़से सर्वथा भिन्न हो। उनका खयाल है कि भारतीय लोग उतरेंगे ही नहीं और यदि जहाज उन्हें घाटपर ले भी आये तो वे जहाजोंपर से ही अपने विरुद्ध खड़ी हुई भीड़को देखकर उतरने के प्रयत्नको व्यर्थताको समझ लेंगे। जो भी हो, यह प्रदर्शन, समझदार अंग्रेजोंकी किसी कार्रवाईकी अपेक्षा, हवा-चक्कीपर ला-मंचाके सरदारको[१] पागलपन-भरी चढ़ाईसे अधिक मिलता-जुलता है। उपनिवेशी सिरफिरे और पागल हो गये हैं। उनके साथ जो सहानुभूति होती, उसे उन्होंने बहुत-कुछ खो दिया है। हमने सुना है कि ब्रिटिश लोग भड़क जायें तो इससे बढ़कर उपहासास्पद और कुछ नहीं हो सकता। टॉमस हडके शब्दोंमें "विचार और कार्य, दोनों न रहें तो बुराई सिरपर सवार हो जाती है।" यूरोपीय लोग जो कार्रवाई इस समय कर रहे हैं, उससे निःसन्देह वे अपने ही उद्देश्यको हानि पहुंचा रहे हैं। 'जोहानिसबर्ग टाइम्स'।

नेटालमें भारतीयोंके प्रवेशका विरोध, किसी भी रूपमें, श्री चेम्बरलेनके कार्यकालकी सबसे कम महत्त्वको घटना नहीं है। इसका प्रभाव इतने अधिक लोगोंपर पड़ता है और ग्रेट ब्रिटेनका इसके साथ इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि यह कहना अत्युक्ति न होगा कि उनके सामने हल करने के लिए अबतक जो समस्याएँ आई हैं उनमें यह सबसे कठिन है। डर्बनमें रोके हुए प्रवेशार्थी उस विशाल जनताके प्रतिनिधि हैं जो यह विश्वास करने की अभ्यस्त बनाई जा चुकी है कि हमारे रक्षक और पोषक वही लोग हैं जो कि अब हमारे साथियोंको एक नये देशमें पैर रखने देनेसे इनकार कर रहे हैं। भारत-भूमिको यह मानने के लिए प्रोत्साहित किया जाता रहा है कि वह साम्राज्यकी एक प्रिय पुत्री है और विभिन्न वाइसरायोंके अव्यावहारिक शासनमें रहकर उसे अपनी स्वतन्त्रताका इस प्रकार दावा करने का अभ्यस्त बनाया जा चुका है कि वह अशिक्षित पूर्वी लोगोंके लिए सेहतमन्द नहीं है। यह विचार अमलमें व्यवहार्य सिद्ध नहीं हुआ। भारतीय लोगोंको यहाँ बुलाया तो इसलिए गया था कि वे देशको समृद्ध बनाने में उपनिवेशियोंकी सहायता करेंगे, परन्तु अब वे अपने मितव्ययी स्वभावके कारण व्यापारमें भयंकर प्रतिस्पर्धी बन बैठे हैं। वे यहाँ बसकर स्वयं उत्पादक बन गये हैं और अब यह डर हो रहा है कि वे कहीं अपने पुराने मालिकको ही बाजारसे निकाल न दें। इसलिए श्री चेम्बरलेनके सामने जो समस्या उपस्थित है, उसे हल करना सुगम नहीं है। नैतिक दृष्टि से श्री चेम्बरलेनको भारतीयोंके पक्षकी न्याय्यताका समर्थन करना ही पड़ेगा, आर्थिक दृष्टि से उन्हें उपनिवेशियों का दावा वाजिब मानना पड़ेगा

  1. सर्वेटिस-कृत डाॅन क्विक्ज़ोट नामक पुस्तक का प्रमुख पात्र जो हवाचक्कीको दानव बनाकर उसपर चढ़ाई करता है।