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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

और राजनैतिक दृष्टिसे किसी भी मनुष्यके लिए यह निश्चय करना कठिन है कि वह किसका दावा मान्य करे।—'स्टार', जोहानिसबर्ग, जनवरी, १८९७।

गुरुवारको तीसरे पहर वर्षाके कारण जो सार्वजनिक सभा मार्केट स्क्वेयरके बदले टाउन हॉलमें हुई थी उसमें उपस्थिति अथवा उत्साहकी कोई कमी नहीं थी। टाउन हॉलमें-डर्बनके सभी वर्गों के लोग मौजूद थे। मजदूर और पेशेवर लोग कन्धेसे कन्धा जोड़कर बैठे थे। इससे प्रकट हो रहा था कि जनताके सभी वर्गों में मतैक्य है और वे उपनिवेशको एशियाइयोंसे पाट देनेके संगठित प्रयत्नका -विरोध करने के लिए दृढ़संकल्प है। श्री गांधीने यह समझकर भारी भूल की है कि जब वे अपने देशवासियोंको प्रतिमास एकसे दो हजारतक की संख्यामें यहाँ भेजने के लिए कोई स्वतन्त्र एजेन्सी भारतमें संगठित कर रहे होंगे, उस समय यहाँके यूरोपीय चुपचाप बैठे रहेंगे। उन्होंने यदि यह समझ लिया है कि यूरोपीय लोग ऐसी किसी योजनापर बिना किसी विरोधके अमल होने देंगे तो उन्होंने यूरोपीय स्वभावको समझनेमें बुरी तरह भूल की है। उन्होंने अपनी तमाम चतुराईके बावजूद यह शोचनीय भूल कर डाली है। और यह भूल ऐसी है कि इसके कारण उनका सोचा हुआ लक्ष्य निश्चय ही पूर्णतः विफल हो जायेगा। वे भूल गये हैं कि यहाँको प्रमुख प्रशासक जातिके नाते हमारे ऊपर एक बड़ी जिम्मेवारी है। हमारे पुरखोंने इस देशको तलवारके बलपर जीता था और वे इसे हमारे लिए जन्मसिद्ध अधिकार तथा विरासतके रूपमें छोड़ गये हैं। यह जन्मसिद्ध अधिकार जिस तरह हमारे हाथोंमें आया है, उसी तरह हमें इसे अपने बेटों और बेटियोंको उनके जन्मसिद्ध अधिकारके रूपमें सौंप देना है। हमें यह जायदाद समस्त ब्रिटिश और यूरोपीय जातियोंके लिए वंशपरम्परागत रूपमें मिली है, और यदि हमने इस सुन्दर भूमिपर ऐसे लोगोंका अधिकार हो जाने दिया जो कि अपने रक्त, स्वभाव, परम्पराओं, धर्म और राष्ट्रीय जीवनको अंगभूत प्रत्येक बातमें हमसे भिन्न हैं, तो हम अपनी विरासतके प्रति सच्चे सिद्ध नहीं हो सकेंगे। इस देशके मूल निवासियोंके हितोंका रक्षक होनेके नाते भी हमारे सिरपर एक भारी जिम्मेवारी है। नेटालके आधा करोड़ बतनी लोग गोरे आदमीको उस दृष्टि से देखते हैं जिससे कि बेटा बापको देखता है, और इसलिए न्यायका तकाजा है कि और कुछ नहीं तो हमें कमसे-कम नेटालके वतनियोंके इस अधिकारको यथाशक्ति रक्षा करनी चाहिए कि उपनिवेशमें मजदूरी करने का जायज अधिकार उन्हींका है। उनके अतिरिक्त वे भारतीय भी हैं जो उपनिवेशमें पहले ही बस चुके हैं। इनमें से अधिकतरको हम ही यहाँ लाये थे, और इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम देखें कि वे ऐसी किन्हीं कठिनाइयों और हानियोंके शिकार न हो जायें जो कि उनके देशवासियोंकी यहाँ बाढ़ आ जानेके कारण उत्पन्न हो जायेंगी और