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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

जिनके कारण उनके लिए ईमानदारीसे आजीविका कमा सकना कठिन हो जायेगा। इस समय इस उपनिवेशमें कमसे-कम पचास हजार भारतीय मौजूद हैं। वे यहाँको आवश्यकताओंके लिए बहुत काफी हैं। उनकी संख्या यूरोपीयोंसे भी अधिक है। इस सम्बन्धमें सरकारके रुखको गुरुवारको सभामें श्री वाइलीने बड़ी योग्यतासे समझा दिया था।. . .

डॉ॰ मैकेंजीने कहा था कि मुझे सरकारकी कार्रवाईसे पूरा-पूरा सन्तोष है और प्रदर्शन-समितिके और सब सदस्य भी मेरे समान ही सन्तुष्ट हैं। इस उद्देश्यके साथ सबके सहमत होनेके कारण पूरी आशा है कि यह प्रदर्शन पूरे-पूरे अर्थमें शांत रहेगा। इसका उपयोग भारतीयोंके लिए एक पदार्थपाठकी तरह होना चाहिए कि इस उपनिवेशके जो द्वार उनके लिए इतने समयसे खुले हुए थे, वे अब बन्द होनेवाले हैं, और इसलिए उन्हें चाहिए कि वे अबतक की तरह भारतमें वर्तमान अपने मित्रों और नातेदारोंको यहाँ आनेके लिए प्रेरित करने का प्रयत्न न करें। यदि प्रदर्शनको भली-भाँति काबूमें रखा गया और नेताओंने जो कार्यक्रम रखा है, उसे भली प्रकार पूरा किया गया तो वह अपने आपमें हानिकारक नहीं हो सकता। जैसाकि हम पहले बता चुके हैं, समस्या केवल इतनी है कि भीड़को सुगमतासे नियन्त्रणमें नहीं रखा जा सकता और इसलिए नेताओंकी जिम्मेवारी विशेष है। परन्तु नेताओंको उक्त नियन्त्रण रख सकने की अपनी योग्यतामें विश्वास मालूम पड़ता है, और वे बन्दरगाहपर जानेके अपने कार्यक्रमको पूरा करने के निश्चयपर दृढ़ हैं। यदि सब-कुछ भली प्रकार निभ गया तो इस प्रदर्शनसे सरकारको बहुत अधिक नैतिक बल प्राप्त हो जायेगा। इससे यह भी प्रकट हो जायेगा कि लोग इस आन्दोलनका हृदयसे साथ दे रहे हैं। श्री वाइलोका यह कथन बिलकुल सत्य था कि हमारे हाथमें जो शक्ति है उसका हमें प्रदर्शन तो करना चाहिए, परन्तु सफलता उन्हीं लोगोंको मिल सकती है जो उस शक्तिका प्रयोग उसका दुरुपयोग किये बिना कर सकें। इसलिए हम कानून और अमन-अमानको पूरी तरह बनाये रखने की आवश्यकतापर जितना भी जोर दें उतना ही थोड़ा है। अन्तिम सफलता इस बातपर भी उतनी ही निर्भर करती है जितनी अन्य किसी बातपर। और हमें विश्वास है कि प्रदर्शनके नेताओं में इतनी समझ, सूझ-बूझ और बुद्धि है कि वे अपने अनुयायियोंके उत्साहको विवेकका उल्लंघन नहीं करने देंगे।—'नेटाल मर्क्युरी', ९ जनवरी, १८९७।

गत पखवारेमें डर्बनमें 'कूरलैंड' और 'नादरी' जहाजोंके भारतीय यात्रियोंको डराने और उतरने से रोकने के लिए जो-कुछ कहा और किया जा चुका है, उसके पश्चात् भी ईमानदारीसे यह मानना पड़ता है कि प्रदर्शनका अन्त लज्जाजनक रहा। यद्यपि प्रदर्शनके नेता अपनी हारको स्वभावतः जीतका