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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

दावा करके छिपाने का प्रयत्न कर रहे हैं तो भी यह सारा काण्ड, जहाँतक इसके मूल और घोषित उद्देश्यका सम्बन्ध है, पूरी तरह असफल सिद्ध हुआ है। उद्देश्य यह था—और इससे कम या ज्यादा कुछ नहीं—कि इन दोनों जहाजोंके भारतीय यात्रियोंको नेटालकी भूमि का स्पर्श किये बिना एकदम भारत लौटने के लिए बाध्य कर दिया जाये। यह पूरा नहीं हुआ।. . .वर्तमान कानून किसी भी देशसे आनेवाले लोगोंको यहाँ प्रवेशको जो इजाजत देते हैं उसमें नेटालके लोग अकस्मात् ही अपनी किसी मूर्खतापूर्ण कार्रवाई द्वारा हस्तक्षेप नहीं कर सकते। सम्भव है कि हालमें जो प्रदर्शन भारतसे आये हुए लोगोंके विरुद्ध उभारा गया था वह उन्हें डराने में सफल हो जाता, परन्त उसके पश्चात भी ऐसी कोई चीज हासिल न होती जिसपर प्रदर्शनकारी सचमच अभिमान कर सकते। यदि असहाय कुलियोंका छोटा-सा दल यहाँ बसे हुए यूरोपीयों द्वारा, जिन्हें चीखते-चिल्लाते काफिरोंके एक गिरोहकी सहायता प्राप्त थी, पीटे जानेके भयसे लौट भी जाता तो भी यह जीत शोचनीय ही होती। काफिरोंकी यह सहायता उन्हें केवल इस कारण प्राप्त हुई थी कि काफिर तो अपने प्रतिस्पर्धी कुलियोंके प्रति अपनी अरुचि प्रदर्शित करने का अवसर पाकर बहुत खुश हो गये थे। इस प्रदर्शनका अन्त जैसा हुआ यह बहुत अच्छा हुआ। बुधवारको डर्बन में हुई घटनाओंका शोचनीय पहलू सिर्फ यह था कि श्री गांधी पर आक्रमण किया गया। यह ठीक है कि नेटालके लोग उनसे इस कारण बहुत नाराज हैं कि उन्होंने एक पुस्तिका प्रकाशित करके उसमें उनपर गिरमिटिया भारतीयोंके साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया था। हमने यह पुस्तिका देखी नहीं है, परन्तु यदि इसमें नेटालियोंके सारे समाजपर आक्षेप किये गये हैं तो वे निराधार हैं। फिर भी इसमें सन्देह नहीं है कि हालमें नेटालकी अदालतोंमें सुने गये एक मुकदमेसे जाहिर हो गया था कि कमसे-कम यहाँ एक जायदादपर अत्यन्त क्रूर व्यवहारके उदाहरण घटित हो चुके हैं और इसलिए एक शिक्षित भारतीयके नाते यदि श्री गांधी अपने देशवासियोंके साथ ऐसे दुर्व्यवहारसे ऋद्ध होकर उसका कुछ उपाय करना चाहते हैं तो उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता। जहाँतक श्री गांधीपर आक्रमणका सम्बन्ध है वह भीड़के किन्हीं सम्मानित व्यक्तियों द्वारा किया गया नहीं जान पड़ता। परन्तु फिर भी यह असंदिग्ध है कि जिन नवयुवकोंने श्री गांधीको घायल करने का यत्न किया वे इस प्रदर्शनके जिम्मेवार संगठनकर्ताओंके असंयत भाषणोंके कारण ही भड़के हुए थे। श्री गांधी कोई बड़ी चोट खाये बिना और शायद अपनी जान खोनेसे भी बच गये, यह पुलिसकी मुस्तैदीका ही फल था।. . .परन्तु दक्षिण आफ्रिका इस समय एक परिवर्तनको अवस्थासे गुजर रहा है। उसका उक्त असफल प्रदर्शन एक चिह्न-मात्र है। यह सारा देश अभी अपने लड़कपनमें है और