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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

लड़कोंको अपने झगड़ोंका फैसला शारीरिक बलके खुनी प्रयोगके द्वारा करने का शौक होता ही है। इस दृष्टिसे देखा जाये तो डर्बनकी इस सप्ताहकी घटनाओंको हँसकर टाला जा सकता है। परन्तु यदि अन्य किसी दृष्टिसे देखा जाये तो घटनाएँ अत्यन्त निन्दनीय हैं, क्योंकि इनके कारण उन अत्यन्त जटिल राजनीतिक और आर्थिक समस्याओंका, जो केवल नेटालके लिए ही नहीं, बल्कि इंग्लैंड, भारत और समस्त दक्षिण आफ्रिकाके लिए महत्त्वपूर्ण हैं, अन्तिम हल निकालने में सहायता मिलने की अपेक्षा बाधा ही पड़ती है।—'स्टार', जोहानिसबर्ग, जनवरी, १८९७।

भारतीयोंके साथ व्यापार करने का चलन जब जोरोंपर हैं तब 'नादरी' और 'कूरलैंड' के कुछ सौ यात्रियोंको उतरने से रोकने का क्या फायदा? कई वर्ष पहलेकी बात है कि, जब फ्री स्टेटमें संसद (फोक्सराट) के वर्तमान कानूनपर अमल शुरू नहीं हुआ था, तब हैरीस्मिथमें अरब लोगोंने अपनी दूकानें खोली थीं और वे पुरानी जमी हुई दूकानोंके मुकाबलेमें एकदम ३० प्रतिशत कम मूल्यपर माल बेचने लगे थे। बोअर लोग रंगके विरुद्ध सबसे अधिक शोर मचाते हैं, और उन्हींकी इन अरबोंके पास भीड़ रहती थी। वे सिद्धान्तको तो निन्दा करते थे, परन्तु नफा खाते हुए उन्हें संकोच नहीं होता था। आज नेटालमें भी बहुत-कुछ वही हाल है। यात्रियोंमें लुहारों, बढ़इयों, कारकुनों और छापाखानावालों आदिके होनेकी बात सुनकर "मजदूर-वर्ग" भड़क गया और निःसन्देह उसका समर्थन उन लोगोंने किया जिन्हें सर्वव्यापक हिन्दूके दबावका जीवन के अन्य क्षेत्रोंमें अनुभव हो रहा था। परन्तु इनमें से किसीको भी शायद इस बातका ध्यान नहीं था कि वे स्वयं भारतके फ़ाजिल मजदूरोंका ध्यान नेटालको ओर आकृष्ट करने में सहायक बने हुए हैं। जो सब्जियाँ, फल और मछलियाँ नेटालमें भोजनकी मेजोंकी शान बढ़ाती हैं उन सबको कुली ही बोते, पकड़ते और बेचते हैं। दस्तरख्वानोंको कोई और कुली धोता है। शायद मेहमानोंको खाना परोसनका काम भी कुलो हजूरिया ही करता है, और वे कुली रसोइये का ही बनाया हुआ खाना खाते हैं। नेटालियोंको चाहिए कि वे ऐसे परस्परविरोधी काम न करें। उन्हें चाहिए कि वे कुलियोंके स्थानपर पहले अपनी जातिके गरीब लोगोंसे काम लेना शुरू करें और इस तरह भारतीय लोगोंको निकालना आरम्भ करें, और निरोधक कानून बनाने का काम अपने निर्वाचित प्रतिनिधियोंके लिए छोड़ दें। जबतक नेटाल एशियाइयोंके लिए इस प्रकार रहने का मन-भावन स्थान बना रहेगा और जबतक नेटालवाले काले लोगोंकी सस्ती मजदूरियोंसे बड़ी संख्यामें लाभ उठाते रहेंगे तबतक उनके यहाँ आगमनको, बिना कानून बनाये ही, ज्यादासे-ज्यादा घटा देनेका काम यदि अकल्पित रूपसे असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य रहेगा।—'डी॰ एफ॰ न्यूज', जनवरी, १८९७।