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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

था, परन्तु इसे यदि कानून और अमन-अमानके उसूलोंसे न भी देखा जाये तो भी जब अंग्नेज एक बिना सजा पाये स्वतन्त्र व्यक्तिके साथ ऐसा असज्जनोचित और पशुताका व्यवहार करने पर उतारू हो जायें, तब समझना चाहिए कि डर्बनमें न्याय तथा औचित्यकी ब्रिटिश भावनाका निश्चय ही द्रुत गतिसे लोप होने लगा है। नेटालवालोंने यह मारपीट "ब्रिटेनके शानदार आश्रित देश"— भारत के एक प्रजाजनसे की है, और भारतको ब्रिटिश राजमुकुटका उज्ज्वलतम रत्न कहा जाता है। इसलिए ब्रिटेन और भारतको सरकारें इस घटनाको तरफसे उदासीन नहीं रह सकेंगी।-'जोहानिसबर्ग टाइम्स', जनवरी, १८९७।

डर्बनके लोग अपनी शिकायतोंको बढ़ा-चढ़ाकर प्रकट करना चाहते हैं, और वैसा करने के लिए उन्होंने डराने-धमकाने के जिन कानून-विरोधी तरीकोंको अपनाया उनकी सफाई यह कहकर दी जा रही है कि जो हित संकटमें पड़ गये थे वे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थे और अबतक इन तरीकोंसे परिणाम अच्छे निकले है।. . . यद्यपि उपनिवेशमें कुछ अन्धे लोगोंको ऐसा लग रहा है कि शासनके अधिकार प्रदर्शन-आन्दोलनके नेताओंको सौंप दिये गये थे, परन्तु आन्दोलनका संचालन और नियन्त्रण, शुरूसे आखिरतक, चुपचाप और बिना किसी दिखावे या हल्ले-गुल्लेके शासक लोग ही कर रहे थे।—'नेटाल मर्क्युरो', १४ जनवरी, १८९७।.

दलकी दृष्टिसे प्रदर्शन सफल रहा, ऐसा दिखावा करना निरा दम्भ होगा। कल बन्दरगाहपर जो भाषणबाजी हुई, उसकी आवाज सार्वजनिक सभाओंके भाषणोंके स्वरसे बहुत भिन्न थी। उस सबसे यह सचाई छिप नहीं सकती कि प्रदर्शनका मूल उद्देश्य, अर्थात् दोनों जहाजोंके यात्रियोंको उतरने से रोकना, सिद्ध नहीं हुआ और जितना सिद्ध हुआ उतनी अन्य उपायोंसे भी हो सकता था। हम सदासे यही कहते आये हैं।. . .हम जानना चाहते हैं कि कलकी कार्रवाइयोंसे मिला क्या? यदि यह कहा जाये कि उनसे एशियाई आक्रमणको रोकने की आवश्यकताका महत्त्व प्रतिपादित हो गया तो हमारा जवाब यह है कि उसका प्रतिपादन तो उतने ही बलपूर्वक सार्वजनिक सभाओंसे भी हो चुका था। और तिसपर इसका समर्थन सभी करते हैं। यदि कोई यह तर्क करे कि उससे प्रकट हो गया कि लोग दिलसे क्या कहते हैं तो हम इससे सहमत नहीं हो सकते, क्योंकि लोग सरकारके प्रतिनिधिसे वही आश्वासन सुनकर वापस लौट गये जो उसने एक सप्ताह पहले ही दे दिया था। तब सरकारने वचन दिया था कि वह इस समस्याको हल करने के लिए कानून बनायेगी। कल भी श्री एस्कम्बने इसी आश्वासनको दुहराया, और इससे अधिक कोई वचन नहीं दिया। न तो उन्होंने संसदका विशेष अधिवेशन बुलानेकी बात कही और न भारतीय यात्रियोंको लौटा देनेका वचन दिया। अब समितिने घोषणा की