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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय


गत सप्ताहकी सारी गलेबाजी, कवायद, और बिगुलबाजीके बाद भी डर्बनके नागरिक इतिहासका निर्माण नहीं कर सके—"हाँ, यदि उस मामूली-से आदमी गांधीकी आँखपर सड़े हुए आलूका निशाना बाँधना कोई ऐतिहासिक तथ्य हो तो बात दूसरी है। भीड़की बहादुरीके कारनामे प्रायः गम्भीरसे उपहासास्पद हो ही जाया करते हैं। और लापरवाहीसे भरी हुई दलीलोंके साथ लापरवाहीसे फेंके हुए अंडोंका मेल भी बैठ ही जाता है।. . .सप्ताह-भर तक नेटालके मन्त्रियोंने हालातको उसी रफ्तार से बिगड़ने दिया। उन्होंने दस्तन्दाजीका दिखावातक नहीं किया। उनकी नीति ही सारे मामलेको गैर-सरकारी छूट दे देनेकी मालूम पड़ती थी। फिर जब 'नादरी' और 'कूरलैंड' जहाजघाटसे केवल कुछ-सौ गज दूर रह गये तब श्री एस्कम्ब मौकेपर प्रकट हो गये। उन्होंने बढ़कर बीच-बचाव किया। लोग तितर-बितर हो गये, और कुछ घंटे बाद उन्होंने असफल जोशका प्रदर्शन, गांधोका रिक्शा उलटकर, उनकी आँखोंको चोट पहुँचाकर और जिस मकानमें उन्हें रखा गया था उसपर जंगलीपनसे हमला करके किया—'केप आर्गस', जनवरी, १८९७।

प्रदर्शनमें कुछ-सौ काफिरोंका दस्ता क्यों शामिल था, इस बातकी सफाई अबतक नहीं हुई। इसका मतलब क्या यह था कि गोरे और वतनी लोगोंका उद्देश्य एक ही है? वरना, यह और किस बातकी निशानी थी? एक बातपर लोकमतको सर्वसम्मति है। लोगोंने जो परिणाम निकाल लिया है, वह भ्रांत हो सकता है, परन्तु उन्हें यह विश्वास कभी नहीं होगा कि सारा मामला सरकार और इस अद्भुत आन्दोलनके नेताओंके आपसी षड्यन्त्रका परिणाम नहीं था, और स्वयं-गठित समिति इसमें सफल नहीं हो सकी। सब-कुछ नाटकीय हलकेपनसे हो गया। मन्त्रियोंने एक ऐसी समितिको अपने अधिकार सौंप दिये, जिसका यह दावा था कि वह जनताको प्रतिनिधि है। उनका कहना था कि तुम कुछ भी करो, मगर वैधानिक ढंगसे करो। यह सन्देश सबतक पहुँचा दिया गया, और वैधानिक कार्रवाईके जादूका असर भी हुआ, परन्तु आजतक यह कोई भी नहीं समझा कि इसका मतलब क्या था। मन्त्रियोंने वैधानिक ढंगसे काम किया और वचन दे दिया था कि हम शांति-भंग होनेपर भी हस्तक्षेप नहीं करेंगे। उन्होंने कह दिया था कि हम सिर्फ गवर्नरके पास जायेंगे और उनसे कह देंगे कि हमें पद-भारसे मुक्त कर दीजिए। समितिने सर्वथा वैधानिक विधिसे भीड़ इकट्ठी की, उसमें वतनी लोगोंको भी शामिल किया, और वह कुछ ब्रिटिश प्रजाओंको एक ब्रिटिश उपनिवेशमें उतरने से बलपूर्वक रोकने के लिए निकल पड़ी। इस मोहक नाटकका अन्तिम अंक बन्दरगाहपर खेला गया। उसमें समितिने अपने अधिकार श्री एस्कम्बको वापस लौटा दिये, सरकारको फिर प्रतिष्ठित कर दिया गया, और