पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/२१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९५
प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

अथवा प्रोत्साहित करने लगे तो विभिन्न हितोंका संघर्ष होनेकी स्थितिमें इन सब भागों को परस्पर मित्रभाव रखने के लिए प्रेरित करने का कार्य पहलेसे बहुत अधिक कठिन हो जायेगा। और यदि साम्राज्यकी सरकार इस सिद्धान्तको मानती है कि भारतीय ब्रिटिश प्रजाजनोंको भी साम्राज्यके सब उपनिवेशोंके साथ सम्बन्ध रखने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए तो प्रार्थी यह विश्वास करने का साहस करते हैं कि साम्राज्य-सरकारकी ओरसे ऐसी कोई घोषणा कर दी जायेगी जो कि औपनिवेशिक सरकारोंकी ओरसे ऐसा शोचनीय पक्षपात होनेकी सम्भावनाको रोक दे।

इस संघर्षके समय भारतीय समाजका व्यवहार कैसा रहा था, इस सम्बन्धमें १६ जनवरीके 'नेटाल एडवर्टाइज़र' में की गई निम्नलिखित टिप्पणी अंकित करने योग्य है :

इस सप्ताहकी उत्तेजनाके दौरान डर्बनको भारतीय जनताने जो व्यवहार किया वही सर्वथा इष्ट था। निश्चय ही अपने देशवासियोंके साथ नगरके लोगों का व्यवहार देखकर उसे दुःख हुआ होगा, परन्तु उसने बदला लेनेका कोई प्रयत्न नहीं किया और अपने शान्त व्यवहार तथा सरकारमें विश्वासके द्वारा उसने सार्वजनिक शान्तिको स्थिर रखने में बहुत सहायता दी।

श्री गांधीके साथ जो-कुछ बीती, उसका प्रार्थी और अधिक जिक्र करना नहीं चाहते थे। परन्तु वे नेटालमें दोनों समाजोंके बीच दुभाषियेका कार्य करते हैं। इसलिए यदि उनके सम्बन्धमें कोई गलतफहमी रह गई हो तो भारतीय पक्षको भारी हानि हो जानेकी सम्भावना है। दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके नामपर उन्होंने भारतमें जो-कुछ किया उसकी सफाईमें इस प्रार्थनापत्रमें पहले बहुत-कुछ कहा जा चुका है। परन्तु इस मामलेको और अधिक स्पष्ट करनेके लिए प्रार्थी साम्राज्यसरकारका ध्यान परिशिष्ट म की ओर आकृष्ट करना चाहते हैं। उसमें समाचार-पत्रोंके कुछ उद्धरण एकत्र किये गये हैं। अबसे पूर्व प्राथियोंने साम्राज्य-सरकारकी सेवामें जो प्रार्थनापत्र दिये हैं, उनमें भारतीय ब्रिटिश प्रजाजनोंकी भारतसे बाहरकी स्थितिको स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है। और यह नम्र निवेदन किया गया है कि १८५८ की दयामय घोषणाके अनुसार यह स्थिति साम्राज्यके अन्य प्रजाजनोंके समान होनी चाहिए। महामहिम मारक्विस ऑफ रिपनने उपनिवेशोंके सम्बन्धमें जो खरीता भेजा था, उसमें पहले ही यह उल्लेख कर दिया गया था कि "साम्राज्य-सरकारकी इच्छा है कि महारानीकी भारतीय प्रजाओंके साथ साम्राज्यकी अन्य सब प्रजाओंके समान व्यवहार किया जाये।" परन्तु उसके पश्चात् इतने परिवर्तन हो चुके हैं कि एक नयी घोषणा करना आवश्यक हो गया है। विशेषतः इस कारण कि इस उपनिवेशमें अनेक कानून ऐसे पास किये जा चुके हैं जो कि उक्त नीतिके विरोधी हैं।

प्रार्थियोंका निवेदन है कि इस प्रदर्शनके सम्बन्धमें एक और घटना भी ध्यान देने योग्य है, और वह है बन्दरगाहपर वतनी लोगोंका इकट्ठा होना। इसका पहले भी जिक्र किया जा चुका है, परन्तु डर्बनके एक प्रमुख प्रतिनिधि श्री जी॰ ए॰ डी लैबिस्टरने नगर-परिषद (टाउन कौंसिल) को जो पत्र लिखा है और उसपर सरकारके