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२. दक्षिण आफ्रिकावासी ब्रिटिश भारतीयोंकी कष्ट-गाथा : भारतकी जनतासे अपील[१]

राजकोट, काठियावाड़
१४ अगस्त, १८९६

यह एक अपील है—दक्षिण आफ्रिकावासी एक लाख भारतीयोंकी ओरसे भारत की जनता के नाम। उस देशमें सम्राज्ञीकी भारतीय प्रजाको जिन मुसीबतोंमें जिन्दगी बसर करनी पड़ती है, उन सबकी जानकारी भारतकी जनताको दे देनेकी जिम्मेदारी वहाँके भारतीय समाजके प्रमुख सदस्योंने, प्रतिनिधियोंकी हैसियतसे, मुझे सौंपी है।

दक्षिण आफ्रिका अपने-आपमें एक महादेश है। वह अनेक राज्योंमें बँटा हुआ है। उनमें से नेटाल और केप ऑफ गुड होप, सम्राज्ञीके शासनाधीन उपनिवेश—जूलूलैंड और दक्षिण आफ्रिकी गणराज्य या ट्रान्सवाल, आरेंज फ्री स्टेट और चार्टर्ड टेरिटरीज़में कम या ज्यादा संख्यामें भारतीय बसे हुए हैं। यूरोपीय और उन उपनिवेशोंके मूल निवासी तो वहाँ हैं ही। पोर्तुगीज़ प्रदेशों, अर्थात् डेलागोआ-बे, बैरा और मोज़ाम्बिकमें भारतीयोंकी आबादी बहुत बड़ी है। परन्तु वहाँ भारतीयोंको सर्वसामान्य जनतासे अलग कोई शिकायतें नहीं हैं।

नेटाल

भारतीय दृष्टि से दक्षिण आफ्रिकाका सबसे महत्त्वपूर्ण प्रदेश नेटाल है। उसमें मूल निवासियोंकी संख्या लगभग ४००,०००, यूरोपीयोंकी लगभग ५०,००० और भारतीयोंकी लगभग ५१,००० है। भारतीयोंमें लगभग १६,००० इस समय गिरमिटिया हैं, लगभग ३०,००० ऐसे हैं, जो किसी समय गिरमिटिया थे और इकरारनामेसे मुक्त होने के बाद स्वतन्त्र रूपसे वहाँ बस गये हैं। लगभग ५,००० लोग व्यापारी समाजके हैं। व्यापारी समाजके लोग अपने खर्चेसे वहाँ आये थे। उनमें से कुछ अपने साथ पूंजी भी लाये थे। गिरमिटिया भारतीय मद्रास और कलकत्ताकी मजदूर जमातसे लाये गये हैं। उनकी संख्या लगभग बराबर है। मद्राससे आये हुए लोग साधारणतः तमिलभाषी हैं, कलकत्तासे आये हुए हिन्दी बोलते हैं। इनमें ज्यादातर लोग हिन्दू है; परन्तु मुसलमानोंकी संख्या भी अच्छी-खासी है। बारीकीसे देखा जाये तो ये जाति-बन्धन नहीं मानते। इकरारनामेसे मक्त हो जानेपर ये बागबानी या घूम-घूमकर सब्जियाँ बेचने का रोजगार करते हैं और दो-तीन पौंड महीना कमा लेते है। कुछ लोग छोटी-मोटी दूकानें खोल लेते हैं। परन्तु दूकानदारी असल में तो उन

  1. इसका प्रकाशन एक छोटी पुस्तिकाके रूपमें हुआ था। यह पुस्तिका अपने आवररणके रंगके कारण बादमें 'ग्रीन पैम्फलेट' या 'हरी पुस्तिका' के नामसे प्रसिद्ध हुई।