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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

शराब या तो बिलकुल ही नहीं पीते, या थोड़ी पीते हैं। इनका स्वभाव ही मितव्ययी और कानूनसे दबकर चलने का है।

एक आयुक्त श्री सांडर्सने अपनी अतिरिक्त रिपोर्ट में लिखा है :

जहाँतक स्वतन्त्र भारतीय व्यापारियों, उनकी स्पर्धा और उससे होनेवाली भावोंकी मन्दीका सम्बन्ध है, जिससे कि जनताको लाभ पहुँचता है (और आश्चर्य यह कि वह उसके ही खिलाफ शिकायत करती है), वहाँतक यह बात स्पष्ट है कि ये भारतीय दूकानें गोरे व्यापारियोंकी अधिक बड़ी पेढ़ियोंके बलपर ही चलती हैं। वे पेढ़ियाँ इन दूकानोंका अत्यन्त अनन्य रूपमें पोषण करती हैं। और इस तरह वे अपना माल बेचने के लिए इन दूकानदारोंको अपना नौकर-जैसा बना लेती हैं।

आप चाहें तो भारतीयोंका आगमन रोक दें। अगर अभी खाली मकान काफी न हों तो अरबों या भारतीयोंको, जो आधेसे कम आबाद देशकी उपज व खपतकी शक्ति बढ़ाते हैं, निकालकर और खाली करा लें। परन्तु इस एक विषयको उदाहरणके तौरपर उठाकर जाँचिए, और इसके परिणामोंका पता लगाइए। पता लगाइए कि किस तरह मकानोंके खाली पड़े रहने से जायदाद और सेक्युरिटीज़की कीमत घटती है और कैसे, इसके बाद, इमारतोंके व्यापारमें और उसपर निर्भर करनेवाले दूसरे व्यापारों तथा दूकानोंमें गतिरोध आना अनिवार्य हो जाता है। देखिए कि इससे गोरे मिस्तरियोंकी माँग कैसे कम होती है, और इतने लोगोंकी खर्च करने की शक्ति कम हो जानेसे कैसे राजस्वमें कमीकी अपेक्षा करनी होगी। फिर, छंटनी की या कर बढ़ाने को या दोनोंको क्या जरूरत! इस परिणामका और दूसरे परिणामोंका, जो इतने अधिक हैं कि उनका विस्तारपूर्वक वर्णन नहीं किया जा सकता, मुकाबला कीजिए, और फिर अगर अंधी जाति-भावना या ईर्ष्या ही प्रबल होती है, तो वही हो।

हालमें स्टंगरमें हुई एक सभामें भाषण करते हुए एक वक्ता (श्री क्लेटन) ने कहा था

कुली मजदूर ही नहीं, अरब दूकानदार भी इस उपनिवेशके लिए लाभदायक सिद्ध हुए हैं। मैं जानता हूँ कि मेरा यह विचार लोकप्रिय नहीं है, परन्तु मैंने इस प्रश्नपर सभी दृष्टियोंसे विचार किया है। हमें दिखलाई क्या पड़ता है? मार्केट स्क्वेयरके चारों ओर मकानोंकी जमीनपर लाभका इतना अच्छा शतमान केवल अरब दूकानदारोंके कारण उपलब्ध हो रहा है। जमीनोंके मालिकोंको लाभ केवल इस कारण हुआ है कि जिस जमीनको अन्य कोई कभी न लेता, उसे कुली मजदूरोंने ले लिया है। अभी उस दिन मार्केट स्क्वेयर के साथ लगी हुई मकानोंकी जमीनका मूल्य नीलाममें इतना ऊँचा उठा कि कुछ वर्ष पहले उसकी कोई कल्पनातक नहीं कर सकता था। भारतीयोंने