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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय


संगरोध (क्वारंटीन)[१]—(१) जब कभी कोई स्थान, १८८२ के कानून ४ के अनुसार, रोगग्रस्त क्षेत्र घोषित किया जाये, तब सपरिषद गवर्नर चाहे तो एक अतिरिक्त घोषणा द्वारा यह आज्ञा दे सकता है कि उक्त स्थानसे आनेवाले किसी भी जहाजके किसी भी यात्रीको यहाँ न उतारा जाये। (२) यह आज्ञा उस जहाजपर भी लागू होगी जिसपर कि उक्त रोगग्रस्त घोषित स्थानसे आये हुए यात्री मौजूद हों, वे यात्री भले ही किसी अन्य स्थानसे जहाज पर सवार क्यों न हुए हों, या भले ही जहाजने अपनी यात्रामें घोषित स्थानका स्पर्शतक न किया हो। (३) उक्त आज्ञा तबतक लागू समझी जायेगी जब तक कि उसे अन्य घोषणा द्वारा वापस न ले लिया जाये। (४) जो कोई व्यक्ति इस कानूनका उल्लंघन करके यहाँ उतरेगा उसे, यदि सम्भव होगा तो, तुरन्त ही उसी जहाजपर वापस भेज दिया जायेगा, जिससे कि वह नेटाल आया था और उस जहाजका मास्टर उस यात्रीको वापस लेने और जहाजके मालिकके व्ययपर उसे इस उपनिवेशसे वापस ले जानेके लिए बाध्य होगा। (५) जिस जहाजसे कोई यात्री इस कानूनका उल्लंघन करके यहाँ उतरेगा उसके मास्टर और मालिकोंपर, इतना जुर्माना किया जा सकेगा कि वह इस प्रकार उतरे हुए प्रति यात्री पीछे एक सौ पौंड स्टलिगसे कम न रहे। सर्वोच्च न्यायालयको आज्ञासे वह जुर्माना उस जहाजसे वसूल किया जा सकेगा। और उस जहाजको यहाँसे विदा होनेकी इजाजत तबतक नहीं दी जायेगी जबतक कि वह जुर्माना अदा न कर दे और जबतक उसका मास्टर इस प्रकार उतारे हुए प्रत्येक यात्रीको उपनिवेशसे वापस ले जानेको व्यवस्था न कर दे।

परवाने (लाइसेन्स)[२]—(१) कोई भी नगर-परिषद (टाउन कौंसिल) या नगर-निकाय (टाउन बोर्ड) शहरमें थोक या फुटकर व्यापार करने के लिए आवश्यक वार्षिक परवाने (१८९६ के अधिनियम ३८ के परवाने नहीं) जारी करने के प्रयोजनसे, समय-समयपर किसी अधिकारीको नियुक्ति कर सकता है। (२) जो व्यक्ति इस प्रकार १८८४ के कानून ३८ या इसी प्रकारके अन्य किसी स्टाम्प कानून या इस कानूनके अनुसार थोक या फुटकर व्यापारियोंको परवाने देनेके लिए नियुक्त किया जायेगा, उसे इस कानूनके अर्थोंमें "परवाना देनेवाला अधिकारी" माना जायेगा। (३) परवाना देनेवाला अधिकारी, किसी भी थोक या फुटकर व्यापारीको यथामति परवाना (१८९६ के अधिनियम ३८ का परवाना नहीं) दे सकेगा या देनेसे इनकार कर सकेगा। और उक्त परवाना देनेवाले अधिकारीके परवाना देने या न देनेके निर्णयपर, अगली धारामें बतलाये

  1. देखिए पृ॰ १५५।
  2. परवानेके सम्बन्धमें जो कानून आखिरकार मंजूर किया गया था। उसके लिए देखिए पृ॰ ३००–३।