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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय


एक भारतीय कर्मचारी जब अपने अधिकारीके साथ नियतकालीन दौरेपर जाता है, उसे होटलोंमें स्थान नहीं मिलता। उसे झोंपड़ियोंमें ठहरना पड़ता है। जब मैं नेटालसे रवाना हुआ, उस समय शिकायत इस हदतक पहुँच गई थी कि वह त्यागपत्र दे देनेका गम्भीरतापूर्वक विचार कर रहा था।

डीसिलवा नामके एक यूरेशियन सज्जन फिजीमें एक जिम्मेदारीके पदपर काम करते थे। वे धन कमाने के इरादेसे नेटाल आ गये। वे एक सनदयाफ्ता दवासाज़ हैं। उन्हें पत्र द्वारा दवासाज़के स्थानपर नियुक्त किया गया था। परन्तु जब उनके मालिकने देखा कि वे पूरे गोरे नहीं हैं तो उसने उन्हें नौकरीसे बरतरफ कर दिया। मैं दूसरे यूरेशियनोंको भी जानता हूँ, जो गोरोंमें मिल जाने योग्य गोरे हैं, इसलिए सताये नहीं जाते। यह अंतिम उदाहरण मैने यह बताने के लिए दिया है कि नेटालमें भेदभाव कितना तर्कहीन है। मैं ऐसे कितने ही उदाहरण गिना सकता है। परन्तु आशा है, यह बताने के लिए कि हमारी शिकायतें सच्ची हैं, इतने उदाहरण काफी होंगे। और जैसाकि इंग्लैंडसे एक हमदर्दने एक पत्रमें लिखा है, "इनके निवारणके लिए इन्हें जान लेना ही बस है।"

अब, ऐसे मामलोंमें हम कार्रवाई किस तरहकी करे? क्या हम प्रत्येक मामलेमें श्री चेम्बरलेनके पास जा-जाकर औपनिवेशिक कार्यालयको दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंकी छोटी-मोटी शिकायतें सुनने का कार्यालय बना दें? "छोटी-मोटी" शब्दोंका प्रयोग मैने जान-बूझकर किया है, क्योंकि मैं मंजूर करता हूँ कि इनमें से ज्यादातर मामले छोटी-मोटी मार-पीट और असुविधाओंके ही हैं। परन्तु जब ये नित्य-नियमसे होते है, तो इतने बड़े बन जाते हैं कि हमें इनका संताप निरन्तर बना रहता है। जरा किसी ऐसे देशकी कल्पना कीजिए जहाँ, आप कोई भी हों, अपने-आपको ऐसी मार-पीटसे कभी भी सुरक्षित न समझते हों; जहाँ आपके दिलमें सदा घबराहट रहती हो कि यदि कभी भी किसी यात्रापर गये तो पता नहीं क्या हो जायेगा; जहाँ एक रातके लिए भी आपको किसी होटलमें स्थान न मिल सकता हो। बस, इससे आपको नेटालकी उन हालतोंकी तसवीर मिल जायेगी, जिनमें हम जिन्दगी बसर कर रहे हैं। मेरा विश्वास है, मैं यह कह तो कोई अतिशयोक्ति न होगी कि अगर भारतीय उच्च न्यायालयका कोई न्यायाधीश दक्षिण आफ्रिका जाये और उसने पहलेसे कोई विशेष प्रबन्ध न कर लिया हो तो शायद उसे भी किसी होटलमें स्थान नहीं दिया जायेगा। मुझे यह भी निश्चय है कि यदि वह सिरसे पैर तक यूरोपीय पोशाकसे लैस न हो तो उसे चार्ल्सटाउनसे प्रिटोरिया तक 'काफिरों'[१] के डिब्बेमें यात्रा करनी पड़ेगी।

मैं जानता हूँ कि ऊपर जो उदाहरण दिये गये हैं उनमें से कुछमें श्री चेम्बरलेन आसानीसे राहत नहीं पहुँचा सकते। उदाहरणके लिए, श्री डीसिलवाके मामले में। परन्तु सच बात साफ है। ये घटनाएँ इसलिए होती हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयों

  1. दक्षिण अफ्रीकाकी एक आदिम जातिके लोग।