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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको


"मैने तो समझा था कि श्री लॉटन और मेरी मुलाकात 'निजी भेंट' ही मानी जायेगी। श्री लॉटनने अपने ९ तारीखके पत्रमें यही शब्द लिखे थे।

"आपने अपने पत्रमें जो-कुछ श्री लॉटनके और मेरे द्वारा कहा गया बताया है, मैं उसे सही नहीं मानता।"

इसके उत्तरमें हम निवेदन करना चाहते हैं कि यह तो बिलकुल ठीक है कि श्री लॉटनने अपने ९ तारीखके पत्रमें आपसे 'निजी भेंट' की ही प्रार्थना की थी, परन्तु हम आपका ध्यान इस तथ्यकी ओर खींचना चाहते हैं कि बातचीत जब कुछ मिनट ही चली थी, उस समय आपने श्री लॉटनको यह याद रखने के लिए कहा कि जो-कुछ आप कहेंगे, उसका एक-एक शब्द मैं अगले दिन अपने मन्त्रिमण्डलके साथियों को बतला दूँगा। और आपने हमारे बीच जो बातें हुई थीं, उनमें से प्रत्येक बात हमारे मुवक्किलोंके सामने दुहरा देनेकी इजाजत भी उन्हें दे दी थी।

श्री लॉटनके निश्चय दिलानेपर हम जोर देकर कहना चाहते हैं कि मुलाकातमें जो बातचीत हुई थी, उसका भाव हमने अपने १० तारीखके पत्रमें आपको ठीक-ठीक ही लिखा है। परन्तु आपसमें कोई गलतफ़हमी न रहे, इसके लिए आप हमारी जो-जो गलतियाँ समझते हों, वे बतला दें तो हमें प्रसन्नता होगी।

आपके आज्ञाकारी सेवक,
(हस्ताक्षर) गुडरिक, लॉटन ऐंड कुक

(परिशिष्ट ब)
नकल

डर्बन
१२ जनवरी, १८९७

सेवामें
माननीय हैरी एस्कम्ब
महोदय,

हम मुख्य उपसचिव द्वारा हस्ताक्षरित कलकी तारीखके एक पत्रकी प्राप्ति स्वीकार करते हैं। उसमें उन्होंने सूचना दी है कि उन्हें उपनिवेश-सचिवके नाम लिखे गये ८ और ९ तारीखोंके हमारे दो पत्रोंका उत्तर निम्न प्रकार देनेकी हिदायत दी गई थी :

"आपका यह सुझाव कि यात्रियोंको चुपचाप, जनताको पता लगने दिये बिना, उतार दिया जाये, अमलमें लाना असम्भव है। सरकारको पता चला है कि आपने बन्दरगाहके कप्तानसे अनुरोध किया है कि जहाजोंको खास हिदायतोंके बिना बन्दरगाहमें न लाया जाये। आपकी इस कार्रवाई और आपके इन दोनों पत्रोंसे, जिनका उत्तर दिया जा रहा है, प्रकट होता है कि आप भारतीय यात्रियोंके उतरने के विरुद्ध उपनिवेश-भरमें विद्यमान तीव्र भावनाओंसे परिचित हैं, और उनको इन भावनाओंकी विद्यमानता और तीव्रताकी सूचना देनी ही चाहिए।"