पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/२६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४७
प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

भड़काई नहीं जा रहीं, इसलिए मुझे आशा है कि मेरे पत्रपर शान्ति से और विचारपूर्वक ध्यान दिया जा सकेगा। मैं आरम्भमें ही बतला दूँ कि जब आन्दोलन चल रहा था तभी मैंने श्री गांधीकी भारतमें प्रकाशित उस पुस्तिकाकी एक प्रति प्राप्त कर ली थी, जिसके सम्बन्धमें हमें कुछ मास पूर्व रायटरका एक तार मिला था। इस कारण मैं आपके पाठकोंको विश्वास दिला सकता हूँ कि रायटरने न केवल उस पुस्तिकाका गलत अर्थ किया था, बल्कि इतना गलत किया था कि दोनोंको पढ़ चुकने के पश्चात् मैं यह परिणाम निकाले बिना नहीं रह सकता कि तार लिखनेवाले ने वह पुस्तिका पढ़ी ही नहीं थी। मैं यह भी कह सकता हूँ कि उस पुस्तिकामें ऐसी कोई बात नहीं है जिसपर कोई इस आधारपर आपत्ति कर सके कि वह असत्य है; जो कोई चाहे वह एक प्रति लेकर उसे स्वयं पढ़कर देख सकता है। आपके पाठकोंको चाहिए कि वे ऐसा करें और अपनी सम्मति ईमानदारीसे दें कि क्या कोई बात उसमें असत्य है। क्या कोई बात उसमें ऐसी है जिसे किसी राजनीतिक विरोधीके लिए अपने पक्षके समर्थनमें कहना उचित न हो? दुर्भाग्यवश, रायटरने उसका जो विवरण दिया[१] उससे जनताका मन भड़क गया, और हालके झगड़ोंमें एक भी आदमी ऐसा नहीं था जो जनताको सत्य और असत्यका अन्तर बतला देता। उत्तेजनाके समय जिस-किसीने जो शब्द अपने मुखसे निकाले, उन्हें दुहराकर मैं उसका जी दुखाना नहीं चाहता। मुझे निश्चय है कि शान्तिके समय उसे भी उनके कारण बहुत पछतावा होगा। परन्तु वस्तुस्थितिको स्पष्ट कर देने के प्रयोजनसे मेरा कर्तव्य है कि मैं आपके पाठकोंको बतला दूँ कि जहाज से उतरने और नगरमें आने से पहले श्री गांधीकी स्थिति क्या थी। इसलिए, मैं किसीका भी नाम लिये बिना, केवल उन शब्दोंका भाव यहाँ देता हूँ जो कि सार्वजनिक रूपसे उनके विषयमें कहे गये थे : १. उसने हमारे नामको हिन्दुस्तानकी नालियोंमें घसीटा और हमारी ऐसी काली और मैली तस्वीर खींची कि जैसा उसका अपना चेहरा है। २. उसे किनारेपर उतर आने दो जिससे कि हमें उसपर थूकने का मौका मिल सके। ३. हुक्म मिलते ही उसके साथ कुछ खास बरताव किया जाये और उसे कदापि नेटालमें उतरने न दिया जाये। ४. वह संगरोधमें पड़े जहाजपर, सरकारके विरुद्ध मुकदमा चलाने के लिए यात्रियोंसे फीस वसूल करने में लगा हुआ है। ५. जब प्रदर्शन-समितिके तीन प्रतिनिधि सज्जन 'कूरलैंड' जहाजपर गये, तब वह ऐसे 'सन्नाटे में था कि उसे उठाकर जहाजके सबसे नीचेके गोदाममें ले जाकर रखना पड़ा। एक दूसरे मौकेपर उसे 'कूरलैंड' की छतपर अत्यन्त खिन्न अवस्थामें बैठे पाया गया। उनके विरुद्ध कही गई बातोंके ये केवल कुछ नमूने हैं, परन्तु मेरे प्रयोजनके लिए इतने ही पर्याप्त है। यदि ये आक्षेप सत्य हों, दूसरे शब्दोंमें, यदि श्री गांधी सचमुच कायर, पर-निन्दक, दूर हटकर हमपर छुरीसे कायरतापूर्ण वार करनेवाले हों, यदि उन्होंने ऐसा कोई काम किया हो कि वे दूसरोंके द्वारा थके जाने लायक हों, यदि वे ऐसे डरपोक हों कि सामने आकर अपने कियेका परिणाम भुगतनेको तैयार न हों, तो वे कानूनका सम्मानित पेशा करने के अयोग्य है। अथवा, जिस महान राजनीतिक प्रश्नमें उनके देशवासियोंकी हमारे जितनी ही रुचि है और जिसके

  1. देखिए पृ॰ १५२।