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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ब्रिटिश प्रजा हो सकते हैं परन्तु जातीय परम्पराओं और भावनाओंके अनुसार, जिनका बल कानूनसे कहीं अधिक है, वे विदेशी हैं।—'नेटाल मर्क्युरी', १८ जनवरी, १८९७।

अब यह माना जाने लगा है कि श्री गांधीके विरुद्ध जितना हो-हल्ला मचाया गया था. वह तथ्योंके तकाजेसे कहीं अधिक कटू तीव्र और उग्र था। उनके वर्णनमें कुछ अत्युक्ति होते हुए भी, उसमें उपनिवेशवालों के चरित्रको जान-बूझकर या इच्छापूर्वक ऐसा बिगाड़कर चित्रित करने का यत्न नहीं किया गया था कि उसके कारण उनसे बदला लेने के लिए लोगोंको भड़काना उचित माना जा सकता। निश्चय ही, इस सम्बन्धमें कुछ गरम-मिजाज लोगोंको भ्रम हो गया था। श्री गांधी अपने देशवासियोंकी ठीक वही सेवा करने का यत्न कर रहे हैं, जिसे करने के लिए अंग्रेज सदा तैयार रहते आये है। और जब समय आनेपर शान्तिपूर्वक विचार किया जायेगा तब मानना होगा कि उनके उपाय कितने ही भ्रान्त और उनके सिद्धान्त कितने ही असमर्थनीय क्यों न हों, उनके साथ जाति-च्युत और अछूत आदमीका-सा व्यवहार करने की नीति इतनी बुरी है कि उससे अधिक बुरी दूसरी कोई नीति नहीं हो सकती। वे जिस वस्तुको अपने साथी देशवासियोंका अधिकार समझते हैं, उसीको प्राप्त करने का यत्न कर रहे है। अंग्रेज सदासे यह अभिमान करते आये हैं कि हम किसीके पक्षपाती बनकर भी अपने विरोधियोंके साथ न्यायका त्याग नहीं करते। उपनिवेशी जानते हैं कि श्री गांधीकी मांग पूरी कर देमा इस उपनिवेशके हितोंके लिए घातक होगा। वे। जानते हैं कि एशियाइयों और यूरोपीयोंमें जातीयताका अन्तर मौलिक और स्थायी होने के कारण उनमें सामाजिक समानता कभी हो ही नहीं सकती। कोई भी युक्तिक्रम इस खाईको कभी नहीं पाट सकता। वे जानते हैं कि न्यायके विचार उनके विरुद्ध होते हुए भी आत्मरक्षाकी स्वाभाविक भावना उन्हें चेतावनी दे रही है कि सुरक्षाका मार्ग वही है जो तुमने अपना रखा है। संक्षेपमें, वे जानते हैं कि यदि एशियाइयोंके आगमनपर कोई प्रतिबन्ध न लगाया गया तो यह उपनिवेश गोरोंका उपनिवेश नहीं रहेगा। परन्तु यह सब मनवाने के लिए, जो लोग स्वभावतः हमसे भिन्न विचार रखते हैं उनके साथ अन चित और अनावश्यक कट व्यवहार करके, हमें अपना पक्ष बिगाड़ नहीं लेना चाहिए। हम निजी बातोंपर अधिक जोर देकर पहले ही अपनी बहुत हानि कर चुके हैं। इसलिए आशा है कि भविष्य में अपना आन्दोलन करते हुए उपनिवेशके नेता उस आत्मगौरव और आत्मसंयमका विशेष ध्यान रखेंगे जिसके बिना हम यह आशा नहीं कर सकते कि निष्पक्ष निरीक्षक हमारे पक्षका समर्थन करेंगे।—'नेटाल मर्क्युरी', १९ जनवरी, १८९७।

श्री गांधीने 'एडवर्टाइज़र' के प्रतिनिधिसे भेंटमें[१] जो-कुछ कहा, उसे बहुत रुचिसे पढ़ा गया है और उससे मालूम पड़ता है, उनके पास अपने पक्षमें कहने को बहुतकुछ है। यदि उनके दावे ठीक है तो उनके और इस उपनिवेशको भारतीयोंसे पाट देनेकी उनकी योजनाके विषयमें कही गई बातोंमें भारी अत्युक्तिसे काम लिया गया है। जनतामें उनके विरुद्ध इतनी उत्तेजना बहुत-कुछ इसी कारण फैली है। आशा है

  1. देखिए पृ॰ २२६–३४।