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प्रर्थनापत्र : नेटाल विधानसभाको

लोगोंपर गैर-कानूनी गिरफ्तारीके लिए हरजानेका दावा नहीं किया जा सकता, जो उपधारा २ में उल्लिखित परवाना न रखनेवाले स्वतन्त्र भारतीयोंको गिरफ्तार करें। झगड़ा तो तभी पैदा होता है, जबकि कोई अफसर गिरफ्तारी करने के लिए जरूरत से ज्यादा उत्साह दिखाता है।[१] प्रार्थियोंका खयाल है कि कर्मचारियोंको सिर्फ इतनी सूचना दे देना काफी होता कि वे १८९१ के कानून २५ की उपधारा ३१ का अमल करायें। इसके विपरीत, विधेयक तो पुलिसको परवाना न रखनेवाले भारतीयोंको दण्ड-मयके बिना गिरफ्तार करने की खुली छूट दे देता है। प्रार्थी निवेदन कर दें कि सिर्फ परवाना ले लेने से ही परवानेवाले को परेशानीसे मुक्ति नहीं मिल जाती। परवाना साथ रखना हमेशा सम्भव नहीं है। ऐसे उदाहरण मौजूद हैं, जिनमें परवाना पाये हुए भारतीय परवाना साथ लिये बिना थोड़ी देरके लिए घरसे बाहर जानेपर अफसरोंके अति उत्साहके कारण गिरफ्तार कर लिये गये है। इसलिए, प्राथियोंका निवेदन है कि उपर्युक्त विधेयकसे भारतीय समाजकी रक्षा तो न होगी, बल्कि उसकी उपधारा पाँचवींके कारण उनके अपमान के पहलेसे भी ज्यादा मौकोंकी सम्भावना हो जायेगी। इसलिए प्रार्थी इस सम्माननीय सदनसे प्रार्थना करते हैं कि विधेयकमें ऐसा संशोधन या परिवर्तन कर दिया जाये, जिससे वह भारतीय समाजके सच्चे लाभका जरिया बन जाये, जैसाकि, निस्सन्देह, उसका मंशा है।

अन्तमें, हमें यह दुहरा देनेकी इजाजत दी जाये कि पहले तीन विधेयकोंपर हमारी मुख्य आपत्ति यह है कि उनका मंशा जिस अनिष्टको रोकने का है, उसका अस्तित्व है ही नहीं। इसलिए हमारी प्रार्थना है कि उन विधेयकोंपर विचार करने के पहले यह सम्माननीय सदन आदेश दे दि उपनिवेशमें स्वतन्त्र भारतीय आबादीकी गणना की जाये, कुछ वर्षोंकी वार्षिक संख्या-वृद्धिका हिसाब लगाया जाये और भारतीयोंकी उपस्थिति उपनिवेशके सर्वोत्तम हितोंको सामान्यतः हानि पहुँचानेवाली है या नहीं, इसकी जाँच की जाये।

स्वतन्त्र भारतीयोंके संरक्षणकी उपधारा ५ विधेयक से निकाल दी जाये या ऐसी दूसरी राहतें दी जायें, जिन्हें सदन उपयुक्त समझे। न्याय और दयाके इस कार्य के लिए प्रार्थी अपना कर्तव्य समझकर सदैव दुआ करेंगे, आदि, आदि।

(ह॰) अब्ल्ल करीम हाजी दादा ऐंड कं॰

पीटरमरित्सबर्ग आर्काइब्ज; देखिए : एन-पी-पी, जिल्द ६५६, प्रार्थनापत्र ६

  1. यह उल्लेख उस भारतीय महिलाके मामलेका मालुम होता है, जिसे गैरकानूनी गिरफ्तारीके लिए हरजाना दिलाया गया था; देखिए पृ॰ ८।

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