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प्रर्थनापत्र : नेटाल विधानसभाको


क्योंकि मैंने हमेशा माना है, और अब भी मानता हूँ कि जिस सलाहका मैने अनुसरण किया, वह उत्तम थी। इसलिए अगर गवर्नर महोदय मुझे बता सकें कि उन्होंने किस आधारपर उपर्युक्त 'बात कही है, तो मुझे प्रसन्नता होगी।[१]

आपका सेवक,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
नेटाल मर्क्युरी, ८-४-१८९७

३७. प्रार्थनापत्र : नेटाल विधानपरिषदको[२]

२६ मार्च, १८९७[३]

सेवामें
माननीय अध्यक्ष और माननीय सदस्यगण
माननीय विधानपरिषद, नेटाल
पीटरमरित्सबर्ग

निम्न हस्ताक्षरकर्ता, इस उपनिवेशके भारतीय समाजके प्रतिनिधियोंका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है,

कि आपके प्रार्थी गैर-गिरमिटिया भारतीयोंके संरक्षण-सम्बन्धी विधेयकके विषयमें, जो इस समय आपके विचाराधीन है, नम्रतापूर्वक आपकी सेवामें निवेदन करना चाहते हैं। विधेयक पेश करने में सरकारके भले इरादोंके लिए प्रार्थी हृदयसे धन्यवाद देते हैं—खास तौर से इसलिए कि विधेयक सरकार तथा भारतीय समाजके कतिपय सदस्यों के बीच हुए कुछ पत्र-व्यवहारका नतीजा नजर आता है। परन्तु प्राथियोंको भय है कि विधेयकका अच्छा असर उसकी उस उपधारासे व्यर्थ हो जाता है, जिसके अनसार किसी भी अधिकारीको, जो परवाना न रखनेवाले किसी भारतीयको गिरफ्तार करे, गैर-कानूनी गिरफ्तारीके लिए हरजाना देनेके दायित्वसे मुक्त कर दिया गया है। असुविधा तो तभी होती है जबकि कोई अधिकारी १८९१ के कानून २५ के खंड ३१ का अमल कराने में जरूरत से ज्यादा उत्साह दिखाता है। इसलिए, प्राथियोंके नम्र मतसे, अगर पुलिस अधिकारियोंको इतना निर्देश दे दिया जाता कि वे उक्त कानून

  1. औपनिवेशिक सचिव के उत्तर के लिए देखिए पृ॰ २६७–६८।
  2. इस प्रर्थनापत्रका पाठ लगभग वही है जो विधानसभाको दिये गये २६ मार्चके तत्सम्बन्धी अंशका है, देखिए पृ॰ २५६–५७।
  3. प्रर्थनापत्रकी वास्तविक तारीख २६ मार्च ही है (एस॰ एन॰ २३६४), परन्तु यह ३० मार्च को पेश किया गया था।