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परिपत्र


४. अभी स्वतंत्र भारतीयोंको गिरफ्तारीके जिस अप्रिय अनुभवका सामना करना पड़ता है, उससे उनकी रक्षाके लिए एक नयी परवाना-प्रणाली चलाई जायेगी, और जो अधिकारी बिना परवानेवाले भारतीयोंको गिरफ्तार करेंगे, उन्हें गलत गिरफ्तारी करने आदिके कारण कोई जवाबदेही नहीं करनी पड़ेगी।[१] नेटाल-सरकारके सामने निम्न भारतीय-विरोधी कानून बनाने के सुझाव रखे गये हैं :

१. भारतीयोंको भूमि का स्वामी न बनने दिया जाये।

२. नगर-परिषदोंको अधिकार दिया जाये कि वे भारतीयोंको उनके लिए निश्चित की हुई पृथक् बस्तियोंमें रहने के लिए विवश कर सकें।

वर्तमान प्रधानमंत्रीका मत है कि भारतीयोंको सदा "लकड़हारे और पनिहारे" बनकर रहना चाहिए, और "जिस नये दक्षिण आफ्रिकी राष्ट्रका अब निर्माण किया जा रहा है, उसका अंग उन्हें कभी नहीं बनने देना चाहिए। हम यहाँ इतना जिक्र और कर दें कि सब मानते हैं कि नेटालकी समृद्धि मुख्यतया भारतसे आये हुए गिरमिटिया मजदूरोंपर निर्भर करती है, और नेटाल ही भारतीय निवासियोंको स्वतंत्रताके अधिकार देने से इनकार कर रहा है।

परन्तु भारतीयोंकी स्थिति पूरे ही दक्षिण आफ्रिकामें कमोबेश इसी प्रकारकी है। यदि भारतीयोंको ब्रिटिश उपनिवेशों और उनसे सम्बद्ध देशोंमें आने-जाने और उनके साथ कारोबार करने की स्वतन्त्रता नहीं दी जायेगी तो स्वतंत्र भारतीय उद्यमोंका तो अन्त ही हो जायेगा। 'टाइम्स' के कथनानुसार, अभी तो भारतीय अपने बहुत पुराने और परम्परागत अन्धविश्वास छोड़कर व्यापारादिके लिए बाहर जानेकी प्रवृत्ति दिखलाने लगे हैं, और अभी उपनिवेश उनके लिए दरवाजे बन्द किये डाल रहे हैं। यदि ब्रिटिश सरकारने, और इसलिए साम्राज्यकी संसदने, यह सब चलने दिया तो हमारी नम्र सम्मतिम यह १८५८ की दयालुतापूर्ण घोषणाका गम्भीर उल्लंघन होगा। और यदि भारतको ब्रिटिश साम्राज्यसे पृथक् न समझा जाये तो इस व्यवहारसे साम्राज्यके संघकी जड़ ही कट जायेगी।

हमारा खयाल यहाँतक है कि दिये हुए तथ्य-मात्र इतने काफी हैं कि आप उन्हें देखकर हमारे पक्षका पूरी तरह हार्दिक दिलसे समर्थन करने को तैयार हो जायेंगे।

आपके आज्ञाकारी सेवक,
अब्दुल करीम हाजी आदम
(दादा अब्दुल्ला ऐंड कम्पनी)
तथा चालीस अन्य

अंग्रेजीकी मुद्रित प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ २१५९) से।

  1. देखिए पृ॰ ३०२–३।