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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

यद्यपि तीन मौके आये, मैंने जान-बूझकर मतदाता-सूचीमें अपना नाम शामिल नहीं होने दिया। मैं जो सार्वजनिक काम करता हूँ, उसका कोई मेहनताना नहीं पाता। अगर यूरोपीय उपनिवेशी मेरा विश्वास कर सकें तो मैं नम्रतापूर्वक उन्हें विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि मैं दोनों समाजोंके बीच फूट के बीज बोनेके लिए यहाँ नहीं रहता, बल्कि उनके बीच सम्मानपूर्ण मेल-जोल कराने के लिए रहता हूँ। मेरी नम्र रायमें, दोनों समाजोंके बीच जो मनोमालिन्य है, उसमें से ज्यादातरका कारण एकदूसरेकी भावनाओं और कार्योंके बारेमें गलतफहमी है। इसलिए मेरा कार्य उन दोनोंके बीच एक नम्र दुभाषियका है। मुझे यह विश्वास करना सिखाया गया है कि ब्रिटेन और भारत कितने भी समयतक एक साथ रह सकते हैं। शर्त इतनी ही है कि दोनोंके बीच भाईचारेकी भावना हो। ब्रिटेन और भारतके बड़ेसे-बड़े मनस्वी इस आदर्शकी पूर्तिके प्रयत्नों में लगे हुए हैं। मैं तो नम्रताके साथ उनका अनुसरणमात्र कर रहा हूँ, और महसूस करता हूँ कि नेटालके यूरोपीयोंकी वर्तमान कार्रवाइयाँ उस आदर्शकी साधनाको निष्फल करनेवाली भले ही न हों, फिर भी उसमें बाधा डालनेवाली तो है ही। मैं यह भी महसूस करता हूँ कि इन कार्रवाइयोंका आधार पुख्ता नहीं है बल्कि ये जनताके द्वेष-भाव और पूर्वग्रहोंके आधारपर की जा रही हैं। ऐसी स्थितिमें, मैं विश्वास करता हूँ कि यूरोपीय उपनिवेशियोंका मत उपर्युक्त मतसे कितना भी भिन्न क्यों न हो, वे उसके बारेमें सहिष्णुतासे काम लेंगे।

नेटालकी संसदके सामने अनेक विधेयक[१] पेश है। भारतीयोंके हितोंपर उनका प्रतिकूल प्रभाव पड़नेवाला है। भारतीयोंके बारेमें इन्हें ही अन्तिम कानून नहीं माना जाता। किन्तु माननीय प्रधानमंत्रीने कहा है कि उपनिवेशोंके प्रधानमन्त्रियोंकी बैठक हो जानेपर और भी कड़े कानून बनाये जा सकते हैं। भारतीयोंके लि निराशाजनक दृष्किोण है। इसे टालने के लिए अगर वे अपनी तमाम वैध साधनशक्तिका उपयोग करें तो, मेरे खयालसे, उन्हें दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए। दीख पड़ता है कि हर चीज जल्दी-जल्दी की जा रही है, मानों हर तरहके और हर स्थितिके हजारों भारतीयोंकी नेटालमें बाढ़ आ जानेका खतरा आ गया हो।[२] मेरा निवेदन है कि ऐसा कोई खतरा नहीं है। और अगर हो भी तो हालमें जिस संगरोधकानून का अवलम्बन किया गया था, उससे कारगर रोक लगाई जा सकती है। भारतीय लोग उपनिवेशके लिए अनिष्टकारी हैं या हितकारी, इसकी जाँचके सुझावकी खिल्ली उडाई गई है। और फैसला यह दिया गया है कि जिसके आँखें हैं, वह देख सकता है कि किस तरह भारतीय चारों ओरसे यूरोपीयोंको खदेड़ रहे हैं। मैं आदरके साथ मतभेद व्यक्त करता है। गिरमिटिया भारतीयोंके अलावा हजारों स्वतंत्र भारतीयोंने नेटाला बड़ी-बड़ी जायदादोंको विकसित किया है, उन्हें मूल्यवान बनाया है और जंगलोंसे उपजाऊ भूमिमें बदल दिया है। उन्हें, मेरा विश्वास है, आप अनिष्ट न कहेंगे।

  1. संगरोध, विक्रेता-परवाना, प्रवासी प्रबन्धक और गैर-गिरमिटिया भारतीय संरक्षण विधेयक।
  2. २७ मार्च को संसदमें भाषण करते हुए नेटालके प्रधानमंत्रीने देशको स्वतंत्र भारतीय प्रवासियोंसे पूर देनेकी एक व्यवस्थित योजनाकी चर्चा की थी।