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पत्र : 'नेटाल मर्क्युरी' को

भारतसे ही ब्रिटिश साम्राज्य बना है; भारतने इंग्लैंडको लाजवाब प्रतिष्ठा प्रदान की है; भारत इंग्लैंडके लिए अक्सर लड़ा है। तो फिर, क्या यह उचित है कि उसी साम्राज्यके यूरोपीय प्रजाजन जो इस उपनिवेशमें रहते हैं और जो स्वयं भारतके मजदूरोंसे भारी फायदा उठाते हैं, स्वतंत्र भारतीयोंके इस उपनिवेशमें रहकर ईमानदारीके साथ जीविका-उपार्जन करनेपर आपत्ति करें? आपने कहा है कि भारतीय यूरोपीयोंके साथ सामाजिक समानता चाहते हैं। मैं मंजूर करता हूँ कि मैं इस वाक्यांशको भली-भाँति समझा नहीं। परन्तु इतना तो मैं जानता हूँ कि भारतीयोंने श्री चेम्बरलेनसे दोनों समाजोंके बीच सामाजिक सम्बन्धोंको व्यवस्थित करने की माँग कभी नहीं की। और जबतक दोनों समाजोंके बीच आचार-व्यवहार, प्रथाओं, आदतों और धर्मका अन्तर कायम है तबतक, उनमें सामाजिक भेदका रहना स्वाभाविक ही है। भारतीय जो-कुछ समझ नहीं पाते, यह है कि दुनियाके किसी भी भागमें दोनों समाजोंके सहृदयता और मेलजोलसे रहने में यह भेद आड़े क्यों आये, और कानूनकी निगाहमें भारतीयोंको नीचा दर्जा क्यों मंजूर करना पड़े? अगर भारतीयोंकी सफाईसम्बन्धी आदतें जैसी चाहिए वैसी नहीं हैं तो सफाई-विभाग कड़ी चौकसी रखकर आवश्यक सुधार करा सकता है। अगर भारतीय वस्तु-भंडारोंका दिखावा सुन्दर नहीं होता तो परवाना-अधिकारी उन्हें थोड़े-से समयमें सुन्दर बनवा सकते हैं। ये सब बातें तभी हो सकती है जब कि यूरोपीय उपनिवेशी ईसाइयोंकी हैसियतसे भारतीयोंको अपने भाई, या ब्रिटिश प्रजाजनकी हैसियत से बन्धु-प्रजाजन समझें। तब, आजके समान वे उन्हें कोसेंगे नहीं; उन्हें धमकियाँ नहीं देंगे, बल्कि उनमें जो दोष हों, उन्हें निकालने में वे मदद करेंगे और इस तरह उन्हें और अपने-आपको दुनियाकी नजरमें ऊँचा उठायेंगे।

मैं प्रदर्शन-समितिसे[१] अपील करता हूँ, जिसे खास तौरसे मजदूरोंका प्रतिनिधि माना जाता है। अब उसे मालूम हो गया है कि 'कूरलैंड' और 'नादरी' जहाजोंसे ८०० यात्री नेटाल नहीं आये। और जो आये हैं, उनमें एक भी भारतीय कारीगर नहीं है।[२] भारतीयोंने "यूरोपीयोंको रसोइये बना देने और खुद मालिक बन जाने[३] का कोई प्रयत्न नहीं किया। यूरोपीय मजदूरोंको भारतीय मजदूरोंके खिलाफ कोई शिकायत नहीं हो सकती। ऐसी हालतमें, मेरी नम्र राय है, उनके लिए यह शोभनीय होगा कि वे फिरसे अपनी स्थितिपर विचार करें और अपनी शक्तिको ऐसी दिशामें लगायें कि सम्राज्ञीकी उपनिवेशवासी प्रजाके सब वर्ग उत्तेजना और संघर्षकी स्थितिमें रहने के बजाय आपसमें मेलजोल और शांतिसे रहें। अखबारोंमें यह समाचार छपा है कि भारतीयोंकी ओरसे शीघ्र ही एक सज्जन इंग्लैंड जानेवाले हैं और उपनिवेशके खिलाफ प्रमाण इकट्ठे किये जा रहे हैं। इस विषयमें कोई गलतफहमी न हो, इसलिए मैं कह दूँ कि निकट भविष्यमें होनेवाले सम्मेलनके खयालसे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी

  1. देखिए पृ॰ १२६।
  2. देखिए पृ॰ १३२।
  3. देखिए पृ॰ १६१।