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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय


भारतमें अभी हाल में जो काम किया गया है,[१] उसके बाद लोगोंको यह विश्वास दिलाना कठिन है कि वहाँ इस समय बहुत ज्यादा कुछ किया जा सकता है।

प्रस्तावित भारतीय समाचार-पत्रके[२] बारेमें अखबारोंमें जो-कुछ निकला है उसका बहुत अंश सही है। और आपका कृपापत्र आने के पहले उसके सम्बन्धमें मैंने आपकी याद भी की थी। अगर काम पूरा हो गया तो मैं आपसे उसके बारेमें और पत्र-व्यवहार करूँगा। आप जो भी सझाव दे सकेंगे उनकी कद्र की जायेगी।

आपका सच्चा,
मो॰ क॰ गांधी

[पुनश्च :]

शनिवारको प्रदर्शन-सम्बन्धी प्रार्थनापत्रकी एक नकल आपको भेजी गई थी।

ए॰ एम॰ कैमेरॉन महोदय
पी॰ मै॰ बर्ग

मूल अंग्रेजी पत्रकी फोटो-नकल (सी॰ डब्ल्यू॰ १०८०) से; सौजन्य : महाराजा प्रवीरेन्द्रमोहन ठाकुर

४९. पत्र : ब्रिटिश एजेंटको

प्रिटोरिया
१८ मई, १८९७[३]

माननीय ब्रिटिश एजेंट
प्रिटोरिया
श्रीमान्,

आपने इस गणराज्यके ब्रिटिश भारतीयोंके सम्बन्धमें जो मुलाकात देनेकी कृपा की थी, उसमें मैंने कहा था कि अगर १८८५ के कानून ३[४] के अर्थके सम्बन्धमें मारतीय समाज यहाँ एक परीक्षात्मक मुकदमा दायर करे तो उसका खर्च सम्राज्ञी-सरकारको देना चाहिए। इसलिए मैं शिष्टमण्डलकी ओरसे निवेदन करता हूँ कि आप परम माननीय उपनिवेश-मंत्रीको तार देकर पूछे कि क्या सम्राज्ञी-सरकार मुकदमेका खर्च देगी? इस निवेदनके आधार निम्नलिखित हैं :

  1. स्पष्टः गांधीजी ने भारतमें अपने ही १८९६ के काम का उल्लेख किया है।
  2. देखिए पृ॰ १४९।
  3. कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स में उपलब्ध दस्तावेज की मुद्रित प्रतिमें साल गलत था। किन्तु बाद में पत्र सिद्ध हो गया कि पत्र १८९७ का ही है।
  4. देखिए खण्ड १, पृ॰ २०४–५।